आज मुज़फ़्फ़रपुर शहर के पूर्व मेयर की ह’त्या हुए पूरे 365 दिन यानी एक साल पूरे हो गए. इस एक साल में अनेकों गि’रफ्ता’रियां हुई लोग जे’ल भी गए. छूट कर बाहर भी आगये, एसएसपी तक का तबा’दला भी हो गया लेकिन नतीजा आज भी सि’फर है.
हम न पुलिस को दोष दे रहे न न्यायपालिका को लेकिन समीर की ह’त्या तो हुई है न, फिर सवाल उठता है ये हत्या किसने की क्यों की या करवाई???
आखिर कहां झोल है?? मुज़फ़्फ़रपुर में होने वाला हर घ’टना रहस्यमयी क्यों हो जाता है? समीर की ह’त्या का जब कारण पुलिस ने खोजना शुरू किया तो ये भी वही मामला निकला जैसा नवरुणा का मामला था जमीन वाला…..
कांड भी कुछ ऐसे ही उलझ कर रह गया नवरुणा का अपहरण भी सितंबर महीने में हुआ सात साल से ऊपर जाने को है मामला सुप्रीम कोर्ट में है फिर भी नतीजा कुछ नही. वैसा ही कुछ समीर कुमार के साथ भी हो रहा है इनकी भी हत्या सितंबर महीने में हुई इनके हत्या को भी साल लग गया, नतीजा कुछ नही तो फिर पुलिस न्यायपालिका प्रशासन मीडिया ये सब क्या कर रही है जो हर कांड एक रहस्यमयी कहानी बन कर रह जाता है?
आखिर वो कौन लोग है जिनके वजह से मुज़फ़्फ़रपुर में हो रही घटनाओं पर सिस्टम और सरकार पंगु बना हुआ है?
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