जी हाँ, सत्तर के दशक में जार्ज फर्नांडिस युवाओ के दिलो की धड़कन थे, और मुजफ्फरपुर ने उन्हें तब रिकार्ड मतों से जीत दिलायी जब वो जेल की सलाखों के पीछे थे, मुजफ्फरपुर के महान जनता ने जार्ज साहब को जेल के सलाखों के पीछे की तस्वीर देख कर ही, बैलेट पर रिकॉर्ड तोड़ मत जार्ज के नाम किया और अपना सांसद चुना.
जार्ज को मुजफ्फरपुर से चुनाव लड़ने को कहा था जयप्रकाश नारायण ने, वही जेपी जिसने इंदिरा गांधी के तख्त को हिला कर रख दिया और आजादी के बाद लोकतांत्रिक व्यवस्था में लोगो को गुलामों की तरह देखने वाली तानाशाही कांग्रेस सरकार के खिलाफ़ हुंकार भरा था.
VIDEO : मुजफ्फरपुर के इसी मकान में ठहरते जॉर्ज फर्नांडिस pic.twitter.com/azimL5JYi1
— Prabhat Khabar (@prabhatkhabar) January 29, 2019
उसी जयप्रकाश नारायण के अनुयायी समाजवाद के प्रखर नेता, समता पार्टी के संस्थापक, मजदूरों के मशीहा, पोखरण परमाणु परीक्षण के वक़्त अटल बिहारी वाजपेयी के कमांडर, आपातकाल के वक़्त प्रतिरोध के प्रतिक, देश के पूर्व रक्षा मंत्री , रेल मंत्री और उद्योग मंत्री समेत अनेकों पद को सुशोभित कर चुके जार्ज फर्नांडीस हमारे मुजफ्फरपुर से 4 बार सांसद थे , उन्होंने हमारे शहर का सांसद के तौर पर लोकसभा में नेतृत्व किया है, उन्हें कांग्रेस का बहुत बड़ा आलोचक कहा जाता था, जार्ज साहब ने इंदिरा गांधी से लेकर सोनिया गांधी तक का जमकर विरोध किया है.
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आपातकाल के वक़्त जार्ज फर्नांडिस का नाम भारत की राजनीति में एक प्रखर विरोधी के तौर पर आया, जिसने कांग्रेस की दांत खट्टे कर दिए , 1975 में इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल लगाने का विरोध किया.
कहा जाता है कि आपातकाल की घोषणा के बाद जॉर्ज फर्नांडिस ने डायनामाइट लगाकर देश में विस्फोट करने का ऐलान किया था. देश में हिंसा को बढ़ावा देने के आरोप में जॉर्ज और उनके साथियों को 1976 में गिरफ्तार किया गया. और सीबीआई ने जॉर्ज समेत उनके 25 साथियों पर मुकदमा दर्ज किया. इसके लिए विस्फोटक गुजरात के बड़ौदा (वदोदरा) से आए, इसलिए कांड को बड़ौदा डायनामाइट केस के नाम से जाना गया.
जेल जा चुके जार्ज ने इंदिरा गांधी को सत्ता से उखाड़ फेंकने की मानो क़सम खा ली हो उन्होंने देश भर में आपातकाल का विरोध किया, और जेल में रहते हुए भी जनता के दिलों में रहे. इसके बाद हालात सामान्य हुये 1977 में इंदिरा गांधी द्वारा चुनावों की घोषणा के साथ आपातकाल समाप्त हुआ. जॉर्ज फर्नांडिस ने जेल में रहते हुए बिहार के मुजफ्फरपुर से चुनाव लड़ा और रिकॉर्ड मत से जीते. मोरारजी देसाई के नेतृत्व में बनी जनता सरकार में जार्ज फर्नांडिस को उद्योग मंत्री बनाया गया.
उद्योग मंत्री के तौर पर भी उन्होंने कोका कोला जैसे विदेशी कंपनी का खूब विरोध किया, निडर, बेबाक समाजवादी जार्ज को मुजफ्फरपुर ने अपना नेता मान लिया था अब वो देश के नेता बन रहे थे, जार्ज फर्नांडिस ने भारतिय जनता पार्टी का भी खूब साथ दिया और वो एनडीए में शामिल हो गए उन्हें लाल कृष्ण आडवाणी का क़रीबी माना जाता था, जार्ज फर्नांडिस बहुत ही सामान्य स्वभाव के व्यक्ति थे उन्हें मुजफ्फरपुर से भी बहुत लगाव था उन्होंने इस सीट को अपने राजनीति का आधार बनाया आखरी बार 2004 में जब एनडीए देश में बुरी तरह हार गयी थी तब भी जार्ज फर्नांडीस को मुजफ्फरपुर ने जिताया और अपना सांसद बना कर भेजा था.
मुजफ्फरपुर का कांटी थर्मल पावर की स्थापना में भी जार्ज साहब का योगदान है उन्होंने मुजफ्फरपुर को एक राष्ट्रीय पहचान दिलाई और यहाँ के विकास में भी योगदान दिया. मुजफ्फरपुर वालों का सौभाग्य ही कहे इसे जार्ज साहब ने इस सीट को खुद के लिये चुना.
वैसे अपने रेलवे आंदोलन के वजह से जार्ज पूरे देश के मजदूरों के नेता बन चुके थे और हम मुजफ्फरपुर वालो ने तो उन्हें वोट देकर अपना बना लिया, धीरे – धीरे वो बूढ़े हो चले थे 2009 में जेडीयू ने उन्हें टिकट नहीं दिया और वो मुजफ्फरपुर से निर्दलीय चुनाव लड़े मगर इस बार वो हार गए.
धीरे- धीरे वो और बीमार रहने लगे उन्हें आखरी दिनों में भूलने की बीमारी – अलजाइमर हो गयी और पिछले वर्ष वो हम सब को छोड़ उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया , लेकिन मुजफ्फरपुर वालों के दिलों में वो आज भी जिन्दा है, हम शहरवाशी छाती ठोक कर कहेंगे कि जार्ज फर्नांडिस हमारे मुजफ्फरपुर के सांसद थे ..
ये मुजफ्फरपुर की कहानी का तीसरा भाग है पिछली 2 कहानी को भी आपका बहुत प्यार मिला, मुजफ्फरपुर नाउ आपके लिये इस सीरीज में मुजफ्फरपुर की और कहानियां आपको बतायेगा, हमने मुजफ्फरपुर के इतिहास को दुबारा लिखने की क़वायद शुरू कर दी है, इस शहर की हर पुरानी बात हम आपके दिलों में ताजा करेंगे.
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