संस्कृत और हिन्दी साहित्य में आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री और उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता. साहित्य जगत ने शास्त्री जी को छायावाद का अंतिम स्तम्भ कहा गया है.
इसके पूर्व मुजफ्फरपुर की कहानी के पहले के भागों में हमने आपको बताया था कि पृथ्वीराज कपूर और राज कपूर जैसे लोग भी शास्त्री जी के अनुयायी थे. शास्त्री जी की यश और कृति पूरे भारत में फैली थी, हम मुजफ्फरपुर वालों के लिये यह बहुत सुखद है कि शास्त्री जी मुजफ्फरपुर में रहते थे और यहीं उन्होंने अपने प्राण को भी त्याग दिया, शास्त्री जी का घर निराला निकेतन नाम से जाना जाता है, निराला निकेतन में ही शास्त्री जी रहते थे उन्हें पशुओं से भी बहुत लगाव था उन्होंने ने अपने जीवन काल में अपने घर में ढ़ेर सारी जानवरों को पाल रखा था और जो जानवर मर जाते थे शास्त्री जी उनका कब्र भी अपने ही घर मे बनवाते थे, शास्त्री जी का घर आज भी मालीघाट और चतुर्भुज स्थान के बीच में स्तिथ है.
शास्त्री जी देश के साहित्य जगत के अनमोल रत्न थे, उनकी कुछ महत्वपूर्ण रचनाओं की सूची: मेघगीत, अवन्तिका, श्यामासंगीत, राधा (सात खण्डों में), इरावती, एक किरण: सौ झाइयां, दो तिनकों का घोंसला, कालीदास, बांसों का झुरमुट, अशोक वन, सत्यकाम, आदमी, मन की बात, जो न बिक सकी, स्मृति के वातायन, निराला के पत्र, नाट्य सम्राट पृथ्वीराज, कर्मक्षेत्रे: मरुक्षेत्रे, एक असाहित्यिक की डायरी.
इन सभी रचनाओं ने शास्त्री जी को समपूर्ण भारत में ख्याति दिलाई उनकी यह रचनाये स्कूलों और कॉलेजों के पाठ्यक्रम में भी शामिल हुए और देर ही सही सरकार ने भी शास्त्री जी को सम्मानित करना चाहा – वो भी देश के सबसे प्रतिष्ठत पुरष्कारो में से एक पद्मश्री सम्मान से लेकिन शास्त्री जी ने पदम्श्री पुरस्कार को ठुकरा दिया.
महाकवि शास्त्री जी को वर्ष 2010 में पद्मश्री देने की घोषणा हुई थी. पद्मश्री पर शास्त्री जी ने कहा कि चलो देर से ही सही सरकार ने मेरी सुध ली बावजूद इसके पुरस्कार को लेकर सरकार की औपचारिकता उन्हें पसंद नहीं आई. गृह मंत्रालय की तरफ से बायोडाटा मांगा गया था. शास्त्री जी को ये बात ठीक नहीं लगी. उन्होंने कह दिया कि जिन लोगों को मेरे कृतित्व की जानकारी नहीं है, उनके पुरस्कार का कोई मतलब नहीं है. शास्त्री जी ने गृह मंत्रालय से मिली चिठ्ठी पर पद्मश्री अस्वीकार लिखकर वापस गृह मंत्रालय भारत सरकार को भेज दिया था.
गृह मंत्रालय द्वारा बायोडाटा मांगे जाने पर शास्त्री जी नाराज़ हो गये उनका कहना था जीवन भर मैंने खुद को साहित्य को समर्पित कर दिया आजीवन की पूंजी को मैं दो पन्नो के बायोडाटा पर कैसे लिख सकता हूं.
जानकी वल्लभ शास्त्री आज भी सहित्य प्रेमियों के दिल में बसते है उनका व्यक्तित्व किसी परिचय का मोहताज नहीं और हमारे लिये तो यहीं गर्व की बात है कि उन्होंने अपने जीवन का ताना-बाना मुजफ्फरपुर में बुना, हमारे शहर के कई लेखकों को उनका सानिध्य प्राप्त हुआ, शास्त्री जी भले इस दुनिया में नहीं रहे लेकिन उनकी रचना अमर है और मुजफ्फरपुर में आज भी उनकी जीवन के कई यादें और अचार्य जी के शिष्य मौजूद है..
छाती ठोक कर कहिए, हम मुजफ्फरपुर से हैं कि इस कड़ी में इतना ही जल्द ही एक और नयी कहानी के साथ आते है.. तबतक पढ़ते रहे मुजफ्फरपुर नाउ..