– देश प्रेम को सर्वप्रथम रखने वाले, अँग्रेजी हुकूमत से लोहा लेने वाले जुब्बा सहनी के नाम से सब वाक़िफ़ है, जुब्बा सहनी उस दिलेर का नाम है जिसने हिंदुस्तान को अंग्रेजो से मु’क्त कराने के लिये जा’न का बाजी लगा दिया, अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें फां’सी के फं’दे से ल’टका दिया लेकिन जुब्बा सहनी ने उफ़्फ़ तक नहीं किया, उनका मानना था कि इंकलाबीयो को म’रना पड़ता है, इंकलिबियो के म’रने से ही उनका आंदोलन मजबूत होता है.
ऐसे इंकलाबी सोच के प्रणेता जुब्बा सहनी का जन्म मुजफ्फरपुर में हुआ था, मुजफ्फरपुर में उनके याद में जुब्बा सहनी पार्क मौजूद है. जुब्बा सहनी मुजफ्फरपुर के धरती के वो वीर थे जिन्होंने अंग्रेजी हुकमत के छक्के छुड़ा दिये, जुब्बा सहनी इतने वीर थे कि वो अंग्रेजी हुकमत के लिये चिंता का विषय रहते थे, अंग्रेजों को ये बेहतर पता था की अगर जुब्बा जैसे वीर भारत में होंगे तो वो अंग्रेजो की शाख मिट्टी में मिला कर रख देंगे और उन्हें जल्दी ही देश से खदेड़ देंगे, इसी भय से अंग्रेजो ने जुब्बा सहनी की गिरफ्तारी की और उन्हें फांसी के फंदों से लटका दिया.
जेल में अपने साथी कैदियों से जुब्बा सहनी कहते थे सिर्फ़ उनके कुर्बानी से देश आज़ाद नहीं होगा इस धरती माँ की गोरो से बचाने के लिये हर युवा को बेधड़क आगे आना होगा, लेकिन एक अजीब विडंबना ये भी है कि आज मुजफ्फरपुर में जुब्बा सहनी का परिवार गरीबी और गुमनामी की जिंदगी जी रहा है, जिस वीर जुब्बा सहनी ने देश के लिए स्वयं के जान का परवाह नहीं किया वो जुब्बा सहनी के नाम पर बहुत दलों की राजनीति चलती है, लेकिन उनके परिवार की ठीक से रोटी तक नहीं चल पाती.
वो कहते है ना शहीदों के चिता पर लगेंगे हर वर्ष मेले वतन पर मर मिटने वाले का यही आख़री निशां होगा, लेकिन शायद ये बात पुरानी हो गयी, आज 11 मार्च को इस धरती के लाल शहीद जुब्बा सहनी का शहादत दिवस है, आज ही के दिन मुजफ्फरपुर के जुब्बा बाबू फाँसी पर देश के लिए लटक गये थे.
जुब्बा सहनी का जगह हर मुजफ्फरपुर वालों के दिल में होना चाहिये क्योंकि इस मुजफ्फरपुर के धरती के वीर जुब्बा सहनी देश के लिए शहीद हो कर मुजफ्फरपुर की धरती का मान बढ़ाया.
आप भी मुजफ्फरपुर नाउ के संग कहे जुब्बा सहनी अमर रहे, ये मुजफ्फरपुर के कहानी का भाग सात था आगे और भी मुजफ्फरपुर का रोचक कहानी लेकर आएंगे, तबतक छाती ठोक कर कहिए, हम मुजफ्फरपुर से है…