अभिषेक प्रियदर्शी: भोजपुरी जगत को पुरबी धुन का उपहार देने वाले पंडित महेन्दर मिसिर का मुजफ्फरपुर से बड़ा गहरा नाता रहा है। शहर में चतुर्भुज स्थान इलाके से उनका लंबे समय तक ताल्लुक रहा है। यहां की गायिकाओं  व नर्तकियों के साथ उनका काफी समय गुजरा है। उस जमाने में मुजफ्फरपुर की प्रसिद्ध गायिका व नर्तकी की बेटी ढेलाबाई को अगवा कर छपरा पहुंचाने में उनकी भूमिका की चर्चा होती है। अंग्रेजी हुकूमत की जड़े हिलाने में महेन्दर मिसिर का अहम योगदान है। वे चोरी-छिपे नोट छापकर भारत की आजादी के लिए संघर्षरत क्रांतिकारियों को आर्थिक सहयोग करते थे। इसी आरोप में छह अप्रैल 1924 में उन्हें गोपीचंद ऊर्फ जटाधारी प्रसाद की निशानदेही पर गिरफ्तार किया गया।

गिरफ्तारी के वक्त पंडित जी ने एक गाना गाया- ‘पाकल-पाकल पनवा खियवले रे गोपीचनवा, पिरितिया लगाके भेजवले जेलखानवा’। लोक कलाकार सुनील कुमार बताते हैं कि महेन्दर मिसिर के लिखे गीतों को गाकर तवायफें स्वतंत्रता आंदोलन में मदद करती थीं। वे शोषित महिलाओं के दर्द को गीतों  से उभारते थे। आज भोजपुरी कलाकार उनके गीत गाकर प्रसिद्धि को प्राप्त कर रहे हैं। नई पीढ़ी को उस महान विभूति के बारे में बताना चाहिए। इसके लिए सरकारी प्रयास के साथ-साथ समाजिक सांस्कृतिक गतिविधियों की जरूरत है।

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लोक कलाकार प्रेम रंजन ने बताया कि महेन्दर मिसिर अपने गीतों में अपने नाम का जिक्र जरूर करते थे। उनका एक गीत ‘नोटवा जे छापी गिनियां भजवल हो महेन्दर मसिर, ब्रिटिश के कइल हलकान हो महेन्दर मिसिर’ बड़ा प्रसिद्ध है। उनकी कुछ रचनाओं का प्रकाशन बाकी है। मिसिर जी ने जेल में ही ‘अपूर्व रामायण’ की रचना की थी। इसके प्रकाशन के लिए बहुत प्रयास हुआ। अगर उनकी रचनाएं जनता के सामने आएंगी तो यह उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

ठुमरी टप्पा, कजरी, दादरा, खेमटा पर था जबरदस्त अधिकार

पंडित महेन्दर मिसिर का जन्म सारण जिला के जलालपुर प्रखंड के मिश्रवलिया गांव में 16 मार्च 1886 को हुआ था। कलकत्ता, बनारस, मुजफ्फरपुर आदि जगह की कई तवायफें उनको अपना गुरु मानती थीं। इनके लिखे कई गीतों को उनके कोठों पर सजी महफिलों में गाया जाता था। पुरबी की परंपरा पहले भी दिखी है। लेकिन इसकी प्रसिद्धि महेन्दर मिसिर से ही हुई। रामबाग में निराला निकेतन के पास रहने वाले संगीत गुरु नंदलाल मिश्रा बताते हैं कि मिसिर जी हारमोनियम, तबला, झाल, पखावज, मृदंग, बांसुरी पर अद्भुत अधिकार रखते थे। ठुमरी टप्पा, गजल, कजरी, दादरा, खेमटा जैसी गायकी और अन्य कई शास्त्रीय शैलियों पर भी उनका जबरदस्त अधिकार था।

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