निर्भया को आज न्याय मिल गया!

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पुरे 8 साल लगे। लंबी कानूनी प्रक्रिया चली। दोषियों ने बचने के लिए तमाम हथकंडे अपनाए। लेकिन अंततः दोषी नही बचे। दरिंदें फाँसी पर लटका दिए गए।

देश के बाकि लोगों की तरह संतोष हुआ- चलो, देश की एक बेटी को देरी से ही सही, न्याय तो मिला। मिलना भी चाहिए था। देश की राजधानी में जिस तरह एक बेटी की आबरु बेरहमी से दरिंदों ने लूटी, वह अकल्पनीय था। घटना ऐसी थी कि दानव भी सुनकर सहम जाए। पुरे देश ने एकजुटता दिखाई। शासन, प्रशासन पर दबाब बना। अपराधी पकड़े गए। लाख कोशिश हुई बचने और बचाने की, लेकिन सजा हुई। सजा न मिलती तो निराशा होती। अपराधियों के हौसले और बढ़ते।

लेकिन जिस समय निर्भया को मिले इंसाफ़ पर हम ख़ुश हो रहे है, देश की राजधानी से सैंकड़ों किलोमीटर दूर एक ऐसा परिवार है, जो 8 साल से अपनी बेटी के वापस लौटने की बात तो छोड़िये, उसके न्याय पाने की उम्मीद भी धीरे धीरे खत्म होता देख रहा है।
बात नवरुणा के माँ-बाप की हो रही है।

जिस समय देश एकजुट हो “जस्टिस फॉर निर्भया” के नारे लगाते गुस्से में सड़क पर था, उसी समय बिहार के मुजफ्फरपुर में नवरुणा के माँ-बाप चीख-चिल्ला रहे थे, लेकिन उनकी बात सुनने वाला इस देश की व्यवस्था में कोई नही था। आज भी न्याय की चौखट पर इंसाफ़ की गुहार लगाते ही वे दिख रहे है। वे बेबस है! लाचार है! बीमार है! फिर भी डटे है। लड़ रहे है। इस उम्मीद में कि एक दिन न्याय जरुर मिलेगा! वे आज पूछ रहे है, निर्भया को न्याय मिला, मेरी बेटी को न्याय कब मिलेगा!

नवरुणा की मां

मुजफ्फरपुर बिहार की रहने वाली 12 साल की नवरुणा! 7वीं में पढ़ती थी। कुछ बनने का सपना देखती थी। न कोई दुश्मन, न कोई झगड़ा। शहर के बीचोबीच माँ-बाप की ज़मीन थी। दरिंदों की उपसर नज़र लग गयी। भेंट बेटी चढ़ गयी। 18 सितंबर 2012 की रात खिड़की तोड़ उसे घर से उठा लिया गया। घटना का पता चलते ही पुलिस को तुरंत सूचना दी गयी। लेकिन एक महीने तक अपराधियों को पकड़ने की वजाए पुलिस नवरुणा के दोस्तों और घरवालों को ही परेशान करने में लगी रही। पुलिस तबतक सक्रिय नही हुई, जबतक नवरुणा के माँ-बाप ने आत्महत्या करने की कोशिश नही की। उस दौरान हर छोटे-बड़े अधिकारीयों, नेताओं के आगे गुहार लगाते रहे। सब भरोसा दिलाते रहे, लेकिन खानापूर्ति के अलावे कुछ नही हुआ।

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पहले बिहार पुलिस, बाद में बिहार की सीआईडी और अब बीते 6 वर्षों से सीबीआई नवरुणा केस की जाँच कर रही है, लेकिन आजतक पता नही चला उस अभागी बेटी के साथ हुआ क्या! हां एक बात का जरुर पता चला- नवरुणा के मौत की बनाई कहानी की। घर के पास हड्डी के टुकड़े फेंक पहले अपराधियों ने, फिर कागज़ का एक टुकड़ा दिखाकर सीबीआई ने बताया कि नवरुणा अब नही रही! लेकिन इस बात को मानने के लिए न तो माँ-बाप तैयार है, न उपलब्ध साक्ष्य इसे साबित करते है हड्डी नवरुणा की ही थी। हड्डी के टुकड़ों के साथ मिला वह खोपड़ी भी नष्ट कर दिया गया, जो एक महत्वपूर्ण सबूत हो सकता था। घटना के 8 साल बाद आज एक भी अपराधी जेल में नही है। न किसी पर कोई चार्जशिट दाखिल हुई। न जाँच पूरी हुई। इन 8 सालों में जो संदिग्ध पकड़े भी गए, वे सब आज़ाद है। उन्हें क्यों पकड़ा और फिर छोड़ा क्यों, समझ से परे है!

नवरूणा कांड

नवरुणा मामले में पुलिसिया कारवाई से निराश परिजनों को चुप रहने तो वही न्याय की आवाज़ उठाने वाले को पुलिस धमकाकर बात दबाने की कोशिश की। थक हारकर सुप्रीम गए। वहां से सीबीआई जाँच की मांग पूरी हुई। एक लंबी कानूनी लड़ाई के बाद 14 फ़रवरी 2014 से सीबीआई जाँच शुरु हुई। 25 नवंबर 2013 को अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, जल्दी जाँच पूरा करें। जाँच जल्द पूरी होने और नवरुणा व न्याय मिलने का भरोसा जगा। लेकिन जब 2 साल बाद भी कुछ नही हुआ तो अवमानना की याचिका लेकर 2016 में सुप्रीम कोर्ट गया। तब से 9 बार सीबीआई को जाँच पूरी करने का समय मिला चूका है लेकिन जाँच पूरा नही हुआ। हमेशा जाँच पूरी करने के लिए 6 महीने तो कभी 3 महीने की मांग मांगी जाती है। कुछ घिसे पिटे बहाने बनाये जाते है… और कोर्ट समय दे देती है। इन शब्दों को लिखते समय यह जानकारी मिली कि सीबीआई जांच की अवधि 3 महीने और बढ़ाने के लिए 10 वीं बार फिर से कोर्ट में है।

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सुप्रीम कोर्ट जाने और सीबीआई जांच शुरु होने से लगा था अब देरी नही होगी। लेकिन बाद में लगा कुछ ज्यादा ही भरोसा देश की न्यायिक और जांच एजेंसी पर हम कर बैठे। कई बार लगता है अब कहाँ जाए! देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट में मामला चल रहा है। वही दूसरी ओर जाँच करने वाली संस्था सीबीआई है, जो देश की सबसे बड़ी जाँच एजेंसी है। सुप्रीम कोर्ट और सीबीआई से ऊपर तो कुछ है नही! किसके आगे गुहार लगाए!

नवरुणा का घर

लोग पूछते है- नवरुणा केस में न्याय मिलने में क्यों देरी हो रही है! क्या जबाब दिया जाए! लोगों की छोड़िये, सीबीआई के जांच अधिकारी भी जब पीड़ित परिवार और याचिकाकर्ता से ही सबूत ढूंडकर लाने की बात करते है तो मन गुस्सा और असहनीय पीड़ा से भर उठता है।

कई बार लगता है कि नवरुणा बंगाली परिवार से है इसलिए उसे न्याय नही मिल रहा। भाषाई और राजनीतिक रुप से अल्पसंख्यक इस गरीब बंगाली परिवार के पास भूमाफियाओं से लड़ने की ताकत ही नही है। अपराधियों के भय से समाज का खुला समर्थन भी नही है। लोग चाहते है कि न्याय मिले लेकिन ऐसे लोग इस पचड़े में उलझकर दुश्मनी मोल लेना नही चाहते है। बंगाली समाज की अपनी मज़बूरी है। वे ये बात बखूबी समझते है कि न तो वे किसी के वोट बैंक बनने लायक है, न ही उनके मुद्दे उठाने से किसी को कोई फायदा मिलने वाला है। शुरुआती दिनों में बंगाली समाज की ओर से खूब आवाज़े उठी. पटना के एक अंतर्राष्ट्रीय सेमीनार में नवरुणा के लिए प्रस्ताव भी पारित किये गए. लेकिन बाद में सब शांत हो गए। नवरुणा बिहार के किसी मुख्यधारा की राजनीति को प्रभावित करने वाली जातियों में से किसी एक की रहती तो ये मसला 8 साल बाद भी इस तरह उलझा नही रहता।

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इस बात का भी मलाल रहता है कि जैसे निर्भया और उसके न्याय के लिए लोगों ने एकजुटता दिखाई, नवरुणा के लिए वैसी कभी मजबूत, संगठित आवाज़ नही उठी। परिजनों और कुछ उत्साही युवाओं को छोड़ दे तो नवरुणा की फ़िक्र करने वाले लोग खुलकर बहुत कम दिखे। बात मुजफ्फरपुर की करे तो अग्रणी स्वाभिमान को छोड़े किसी भी संगठन ने इस केस को लगातार फ़ॉलो नही किया। कुछ लोगों ने राजनीतिक रोटियां सेंकने की कोशिश की। कुछ नेता नवरुणा के घर भी गए। बाद में वे भी नवरुणा केस को भूल गए। कथित सामाजिक कार्यकर्ताओं ने पाकिस्तान की मलाला के लिए शहर में खूब कैंडल मार्च निकाले, बीते 8 सालों में देश-दुनिया में हुए अपराधों पर खूब आउटरेज किया, न्याय की बड़ी बड़ी बातें की लेकिन बात जब भी नवरुणा की आई तो अधिकतर लोगों ने चुप्पी साधना ही उचित समझा।

नवरुणा की गुड़िया के साथ उनके पिता

नवरुणा के लिए लोगों की चुप्पी की वजह एक और भी है। इस केस के जिस तरह हाई-प्रोफाइल लोगों से जुड़े होने की बात सामने आती रही है, लोग खुलकर सामने आने की छोड़िये, बोलने से भी बचते रहे है। एक बार एक बड़े सामाजिक कार्यकर्त्ता से पूछा, “लोग बोलते क्यों नही?” जबाब मिला- “कही देखार न हो जाए, ए चलते प्रभावशाली लोग सोचई ह कि चुप्पे रहला में भलाई हौ!” इस चुप्पी का अर्थ मुजफ्फरपुर और बिहार में सभी समझते है। स्थानीय मीडिया और जागरुक नागरिकों के एक छोटे से वर्ग को छोड़ दे तो सभी ने इस बेटी को उसके हाल पर छोड़ दिया। न्याय पाने की लड़ाई में नवरुणा और उसका परिवार अकेला है। भय का ये माहौल है कि लोग उसके घर जाने से डरते है। परिवार सामाजिक बहिष्कार जैसी स्थिति में जी रहा है।
क्या नवरुणा को न्याय मिल सकेगा?

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बीते 8 सालों से इस केस के साथ जुड़ा हूँ। मन कहता है- प्रयास व्यर्थ नही जायेंगे। न्याय अवश्य मिलेगा। लेकिन दिमाग हमेशा संशय की स्थिति में रहता है। स्थिति देखकर कई बार लगता कि भ्रष्ट गठजोड़ की भेंट चढ़ी नवरुणा को देश की व्यवस्था न्याय नही दिला पाएगी। नवरुणा भी देश की उन हजारों अभागी बेटियों की सूचि में शामिल हो जायेगी, जिन्हें अपराधी निरकुंश शासक और आपराधिक मानसिकता के लोगों के संरक्षण में घर से उठा ले जाते है और बाद में वे महज मिसिंग लिस्ट में एक नाम भर रह जाते है।

निर्भया के न्याय मिलने के पीछे एक वजह यह भी है कि निर्भया केस के दोषी बेहद गरीब परिवार के थे। लेकिन नवरुणा में अबतक जो भी नाम चर्चा में सामने आये है, उसे सुप्रीम कोर्ट में सीबीआई के वकील के शब्दों में कहे तो वे हाइली इन्फ्लूएंशियल यानी अत्यंत प्रभावशाली लोग है। क्या ये प्रभावशाली लोग न्याय मिलने देंगे?

घोर निराशा के बीच भी बार-बार ऐसी परिस्थितियां बनती है जब उम्मीद की किरण दिखाई देती है। शुरुआत के समय सीबीआई जाँच से जुड़े लोगों की बात याद आती है- देर होगा, लेकिन न्याय जरुर मिलेगा! परिजनों के विश्वास और उनके लड़ने का जज़्बा देखकर लगता है- संघर्ष जारी रहे तो न्याय एक दिन मिलेगा। कब? नही पता!

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