पटना.  अप्रैल 2018 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने हर साल 3 जून को ‘World Bicycle Day’ मनाने का निर्णय लिया था. इसके बाद बीते तीन साल से 3 जून को हर साल ‘विश्व साइकिल दिवस’ यानी World Bicycle Day मनाया जाता है. इसका उद्देश्य पर्यावरण की रक्षा करना है. लेकिन, क्या आपको पता है कि दो पहियों की साइकिल ने बिहार में बीते डेढ़ दशक में सामाजिक बदलाव की दिशा में कैसे खामोश क्रांति कर दी है. अगर नहीं तो 3 जून को इस अवसर पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के ट्वीट को पढ़िये जो यह बता रहे हैं कि दो पहिये की साइकिल ने कैसे बिहार में सााजिक बदलाव का सूत्रपात किया.

सीएम नीतीश कुमार ने गुरुवार को ट्वीट में लिखा- दो पहियों की छोटी सी साइकिल ने बिहार में ठोस सामाजिक क्रांति का सूत्रपात किया है. इसने प्रदेश की बेटियों में आत्मविश्वास जगाया है. साइकिल, पोशाक और अन्य प्रोत्साहन योजनाओं के कारण मैट्रिक परीक्षा में छात्राओं की संख्या छात्रों के बराबर हो गई है.

साइकिल ने बदल दी लोगों की सोच

सीएम ने आगे लिखा- जब हमने साइकिल योजना की शुरुआत की थी, पटना तक में लड़कियां खुलेआम साइकिल नहीं चलाती थीं. इस योजना ने तत्काल लोगों की सोच बदल दी. गांव-गांव में बेटियों को बिना किसी भय या संकोच के साइकिल की सवारी करते देख कर जो संतोष मिलता है, वह अतुलनीय है.छात्राओं के जीवन में आया बड़ा चेंज

बिहार के मुख्‍यमंत्री ने अंत में लिखा कि बिहार में पहले लड़कियों की उच्च शिक्षा के लिए कोशिश नहीं की जाती थी, पर साइकिल सहित विभिन्न प्रोत्साहन योजनाओं के जरिए उनमें पढ़ने के प्रति ऐसी ललक पैदा हुई कि आज उच्च शिक्षा से लेकर प्रतियोगी परीक्षाओं तक में बिहार की छात्राएं मजबूत उपस्थिति दर्ज करा रही हैं.

सीएम नीतीश के ऑन स्पॉट फैसले ने बदला लड़कियों का जीवन

दरअसल, सीएम नीतीश ने जो बातें कहीं वह हकीकत ही हैं. इसकी शुरुआत कैसे हुई यह जानने के लिए एक वाकया बताते हैं आपको. वर्ष 2005 में बिहार की सत्ता संभालने के एक साल बाद नीतीश कुमार पटना ज़िला में एक सरकारी समारोह में शिरकत कर रहे थे. इस समारोह में स्कूल में पढ़ने वाली दलित लड़कियों को साइकिल वितरण किया जा रहा था. वितरण के बाद जब लड़कियां क़तार में खड़ी होकर साइकिल चला कर जाने लगीं तो उस मंजर को देख नीतीश कुमार बेहद खुश हुए. उन्होंने तभी अधिकारियों से कहा कि क्यों न सरकारी स्कूल में पढ़नेवाली तमाम लड़कियों को साइकिल दी जाए. इस तरह से लड़कियों के लिए साइकिल योजना की शुरुआत हुई.

ऐसे बदल रही बिहार की तस्वीर

बिहार में लड़कियों के लिए साइकिल योजना की शुरुआत 2006 में हुई थी. इस योजना से लड़कियों में न सिर्फ़ आत्मविश्वास बढ़ा, बल्कि इस योजना में बिहार के सरकारी स्कूल में पढ़ने वाली लड़कियों की संख्या में भी ज़बरदस्त बढ़ोतरी हुई. इस योजना का कमाल ही था की 2005 में कक्षा 10 की परीक्षा में 1.87 लाख छात्राएं उपस्थित हुईं थीं, जो 2020 में बढ़कर 8.37 लाख हो गई. सरकारी स्कूल में पढ़ने वाली लड़कियों के लिए साइकिल योजना की शुरुआत हुई तो इसका परिणाम भी बेहतर आया, लेकिन सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले लड़कों के लिए भी साइकिल योजना की शुरुआत की एक दिलचस्प कहानी है.

बिहार के छात्रों के लिए भी आई साइकिल स्कीम

JDU MLC नीरज कुमार बताते हैं कि नीतीश कुमार जब मोकामा में अपने एक नज़दीकी मित्र जुगल बाबू के निधन के बाद संस्कार से लौट रहे थे, तो उस वक़्त वह भी साथ में थे. तब ज़ोरदार बारिश हो रही थी. लौटने के समय मोकामा के नज़दीक मोर गांव के पास जब पहुंचे तब उनका क़ाफ़िला एक सरकारी स्कूल के पास कुछ धीमा हुआ. नीरज कुमार बताते हैं कि कुछ लड़के बारिश में भींगकर जा रहे थे, तब नीतीश कुमार ने उनसे कहा कि बारिश में लड़के भींग कर पैदल जा रहे हैं. अगर लड़कों के पास साइकिल होता तो जल्दी से अपने घर निकल जाते.

छात्रों को भी मिला साइकिल योजना का लाभ

इस पूरे घटना के बाद 5 मिनट तक नीतीश कुमार सोचते रहे और उन्होंने तुरंत तत्कालीन मुख्य सचिव अंजनी कुमार सिंह को फोन किया और उनसे पूछा कि अगर सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले लड़कों को साइकिल दी जाए तो पूरी खर्च कितनी लगेगी. इस घटना के कुछ महीने बाद ही सरकारी स्कूल में पढ़नेवाले लड़कों को भी साइकिल योजना का लाभ मिलने लगा.

Source : News18

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