हाथ से निर्मित सूप, दउरी व डगरा जल्द ही बीते दिनों की बात होगी। डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा ने बाहर से मंगाई मशीन को अपग्रेड किया है। इसकी मदद से बांस के कई उत्पाद आसानी से बनाए जा सकेंगे। विवि हाथ से काम करने वाले लोगों में मशीन के प्रति जागरूकता फैला रहा। प्रशिक्षण भी दिया जा रहा, ताकि अधिक से अधिक लोग इसका लाभ उठा सकें।

बांस काटने से लेकर उसे अलग-अलग आकार में करने में काफी श्रम एवं समय लगता है। इस समस्या को देखते हुए कृषि विश्वविद्यालय की पहल पर कृषि अभियंत्रण महाविद्यालय एवं वानिकी विभाग ने ऐसी मशीन पर छह महीने पहले काम शुरू किया। यहां के अभियंता मुकेश कुमार ने बताया कि कई जगह से जानकारी जुटाने के बाद पता चला कि नागपुर में इस तरह की मशीन है। वहां से सात लाख में छोटी-बड़ी सात मशीनें मंगाई गईं। इसमें बैंबू आउटसाइड नॉट रीमू¨वग और कटाई मशीन सहित अन्य शामिल हैं। यहां की जरूरत के हिसाब में इन मशीनों में कई तरह के बदलाव किए गए। इससे अब कुछ ही समय में बांस की चिराई कर कमची बनाई जा सकती है। इसके अलावा पान व अगरबत्ती के लिए सीक सहित 30 प्रकार के उत्पाद बनाए जा सकते। इससे कारीगर सूप, टोकरी व डगरा सहित बांस के विभिन्न उत्पाद आसानी से बना सकते हैं। प्रशिक्षण लेकर छोटा व्यवसाय कर सकते हैं। इसके लिए विश्वविद्यालय ने दो से सात दिनों तक प्रशिक्षण देने की योजना बनाई है। साथ ही बांस की विभिन्न प्रजातियों को चिन्हित किया जा रहा है। क्योंकि, कुछ विशेष प्रजातियां विभिन्न उत्पादों के लिए बेहतर होती हैं।

इन मशीनों से बांस के प्रसंस्करण के बाद बनने वाला उत्पाद पहले से बेहतर होगा। इससे शिल्पकारों को काफी मदद मिलेगी। उनकी आमदनी में वृद्धि होगी। इसका प्रशिक्षण लेने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा।’-डॉ. आरसी श्रीवास्तव, कुलपति, डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा

इनपुट : दैनिक जागरण

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