लोकसभा चुनाव के बाद अगर किसी विषय से पूरा समाचारपत्र रंगा है तो वह वर्तमान में बाढ़ की विभीषिका ही है सूखे से लड़ रहे किसान समाज के लिए मानसून की बारिश एक वरदान बनकर उतरी थी परंतु अनावृष्टि से फलीभूत नदियों ने उफनकर बाढ़ का रूप धारण कर लिया है। पानी की बेकाबू धाराओं ने अगणित क्षति पहुँचायी है और बेसहारा किसनो को जान बचाकर सड़को पर डेरा डालने के लिए मजबूर कर दिया है। बिलखते बच्चों को लेकर भूखे पेट गरीब इस मूसलाधार बारिश में प्रतिदिन लड़ रहे हैं।

मच्छरों के काटने से और गंदे बाढ़ के पानी के संपर्क से उनमें कई बीमारियाँ भी अपनी जगह बना रही हैं। अब ऐसे में सरकार द्वारा कुछ सामान्य रकम की घोषणा महज टालना ही तो है। जलस्तर राज्य के कई जिलों में खतरे के निशान को पारकर हर रोज सैकड़ों ज़िंदगियाँ निगल रहा है। जनजीवन की रीढ़ चरमरा चुकी है। अब ऐसे में सरकार का क्या कदम होता है, देखना यह है। इंसानियत के नाते कुछ स्वयंसेवक तो लगे हुए ही हैं।

Article by Sumedha

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