रुतबा झाड़ते हुये आपने मजाक में बहुत सुना होगा कि चाचा विधायक है हमारे, और ऐसे भी धौस और रोब वाली विधयाक जी के चाचा होने की कहानी तो बहुत सुने होंगे.

अब कुछ ऐसा ही हक़ीक़त वाले मामले को भी देखिए, बत्ती की हनक और कुर्सी की धमक का असली रुतबा तो दिखाया है, बिहार में विधायक जी ने, लेकिन यहाँ विधायक चाचा नहीं बल्कि स्वयं पापा है.

जी हाँ हम इतनी भूमिका इसलिये बांध रहे है क्योंकि आम आदमी का बेटा होना और विधायक जी के आंख का तारा होने में फर्क है.

कोरोना महामारी की इस त्रासदी में राजस्थान के कोटा में बिहार के हजारों बच्चें फंसे है. मुसीबत के समय में घर से दूर इन बच्चों को घर जाने की बहुत बेचैनी है . जब ये मांग नीतीश कुमार के सामने रखी गयी तो तर्क आया ये लॉकडाउन के नियम के विरुद्ध होगा, सरकार ने कहा जब लॉकडाउन में बच्चों को बिहार ले आया जाये तो लॉकडाउन का मतलब क्या होगा. ऐसा करने से तो लॉकडाउन फेल हो जाएगा, लेक़िन ये सारे तर्क और फ़रमान बस आम जनता के लिये है.

सुनिये, विधायक जी भी एक पिता है उनके अपने बेटे से प्यार और आम नागरिक का अपने बच्चों से प्यार में बहुत है. फर्क सत्ता और आम आदमी का है, विधायक जी स्वयं में कानून है और जनता तो बस पालनहार है.

दरअसल बिहार में, हिसुआ से भाजपा विधायक अनिल सिंह लॉक डाउन में नवादा जिला प्रशासन की अनुमति से अपने बेटे और उसके दोस्त को कोटा से वापस लेकर पटना आए हैं .

विधायक अनिल सिंह को नवादा जिला प्रशासन ने अनुमति प्रदान करने का स्पेशल पास जारी किया, जिसे दिखाकर विधायक जी का बेटा आसानी से आम आदमी और खास आदमी के फर्क को लांघते हुए बिहार पहुँच गया.

ऐसे में सवाल ये उठता है की बिहार सरकार में आम आदमी की कोई इज्जत नहीं है. क्या विधायक होना कानून से उपर होना है, जिस जनता को लोकतंत्र में सर्वश्रेष्ठ कहा जाता है. क्या सरकार और प्रशासन को अधिकार है विधायक और आम आदमी के संतान में फर्क करने का, क्या विधायक होना, कानून से उपर होना है.

ये मामला उजागर होने के बाद चारो तरफ बिहार सरकार की किरकिरी हो रही है, राजद समेत तमाम विपक्षी दल नीतीश सरकार पर सवाल उठा रहे है. विपक्ष इस मामले को तूल देकर सरकार का दोहरा चरित्र उजागार कर रही है.

ऐसे में विधायक जी ने तो अपने पावर-पैरवी पास और जिला प्रसाशन कि अनुमती से अपने बेटे को घर बुला लिया, लेक़िन जरा उनकी भी सोचिये , हजारो बच्चों के माँ- बाप जो अपने बच्चें घर से दूर है वो ऐसे में अब ख़ुद को कितना कमजोर और असहाय महसूस कर रहे है..

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Abhishek Ranjan Garg

अभिषेक रंजन, मुजफ्फरपुर में जन्में एक पत्रकार है, इन्होंने अपना स्नातक पत्रकारिता...