जनगणना से जुड़ा कोई भी काम केंद्र सरकार के अलावा कोई और नहीं करा सकता। बिहार की जातीय जनगणना को लेकर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में यह हलफनामा दिया था, जिसे उसने कुछ घंटों के अंदर ही वापस ले लिया। सोमवार को सुबह अदालत में केंद्र सरकार ने जो हलफनामा दिया था, उसमें कहा था कि जनगणना से जुड़ा काम केंद्र सरकार ही करा सकती है। इसके अलावा किसी भी राज्य सरकार एवं अन्य एजेंसियों के दायरे में जनगणना कराना नहीं है। लेकिन सोमवार को शाम होने तक सरकार ने अपना स्टैंड बदल लिया और नया हलफनामा दाखिल करते हुए पुराने को खारिज करने की मांग की।

पहले वाले हलफनामे में केंद्र सरकार ने कहा था, ‘संविधान के मुताबिक केंद्र के अलावा कोई अन्य सरकार या संस्था जनगणना से जुड़ा काम नहीं कर सकती।’ हालांकि शाम को सरकार ने नया एफिडेविट दाखिल किया और पहले वाले के 5वें पैराग्राफ में गलती की बात कही। सरकार ने कहा कि पहले वाले एफिडेविट को खारिज करके नए वाले को ही स्वीकार किया जाए। मोदी सरकार ने कहा कि पहले वाले हलफनामे के 5वें पैराग्राफ में एक गलती हो गई थी, जिसके चलते उसे वापस लिया जा रहा है।

हालांकि सरकार ने नए एफिडेविट में भी अलग ढंग से ही सही, लेकिन पहले वाली बात ही दोहराई है। सरकार ने कहा, ‘जनगणना एक सांविधिक प्रक्रिया है, जिसका संचालन जनगणना अधिनियम, 1948 के तहत किया जाता है। यह केंद्रीय सूची में आता है और संविधान की 7वीं अनुसूची में इसका जिक्र किया गया है। यह अधिनियम सिर्फ केंद्र सरकार को ही यह शक्ति देता है कि वह जनगणना अधिनियम, 1948 के तहत जनगणना करा सके। इसका प्रावधान ऐक्ट के सेक्शन 3 में किया गया है।’ पटना हाई कोर्ट ने बिहार सरकार की ओर से जातीय जनगणना को मंजूरी दी थी, जिसके बाद उसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अर्जियां डाली गई हैं। इन्हीं पर सुनवाई के दौरान केंद्र ने हलफनामा दिया है।

Source : Hindustan

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