संसद के शीतसत्र के पांचवे दिन केंद्र सरकार ने उच्च सदन में बताया कि रेलवे का निजीकरण नहीं किया जा रहा है, बस यात्रियों को सहूलियत देने के लिए कुछ सेवाओं की आउटसोर्सिंग हो रही है। केंद्रीय रेलमंत्री पीयूष गोयल ने शुक्रवार को प्रश्नकाल के दौरान सदन को बताया कि एक अनुमान के तहत रेलवे को सुचारू रूप से चलाने के लिए अगले 12 वर्षों में 50 लाख करोड़ रुपये की जरूरत होगी। सरकार के लिए यह खर्च उठाना मुश्किल है इसलिए यह कदम उठाये जा रहे हैं। गोयल ने कहा, हर दिन बेहतर सेवाओं और रेलवे लाइन्स के लिए सदस्य एक नई मांग लेकर आते हैं। इन्हें पूरा करने के लिए अगले 12 साल के लिए 50 लाख करोड़ रुपये देना सरकार के लिए आसान नहीं है। बजट से जुड़ी कई समस्याएं होती हैं जिन्हें निपटाने के उपाय करने होते हैं।
यात्रियों की बढ़ती संख्या के लिए हजारों नई ट्रेनें शुरू करने और अधिक से अधिक निवेश की आवश्यकता है। ऐसे में अगर निजी निवेशक सरकार के नेतृत्व में इस क्षेत्र में पैसा निवेश करना चाहते हैं तो इसमें क्या गलत है। विभाग का स्वामित्व सरकार के पास ही रहेगा। इसे निजीकरण नहीं कहा जा सकता, सिर्फ कुछ सेवाओं को आउटसोर्स किया जा रहा है।
रेलवे कर्मियों पर नहीं पड़ेगा कोई प्रभाव
रेल राज्यमंत्री सुरेश अंगाड़ी ने कहा, हम सिर्फ वाणिज्यिक और ऑन बोर्ड सेवाओं को निजी क्षेत्र से आउटसोर्स कर रहे हैं। स्वामित्व पूरी तरह से रेलवे का होगा और इससे रेलवे कर्मचारी किसी तरह से प्रभावित नहीं होंगे। निजी क्षेत्र के आने से रोजगार और बढ़ेंगे।
Input : Amar Ujala