राजनीति का एक दौर ऐसा भी था, जब नेता जनता के बीच सादगी के साथ जाना बड़प्पन समझते थे. कलम के जादूगर रामवृक्ष बेनीपुरी ने भी चुनाव में इसी सादगी का परिचय दिया था. जब 1957 के चुनाव में सोशलिस्ट पार्टी से कटरा विधानसभा से उम्मीदवार थे, तो उन्होंने अपने मित्रों से बड़े बेबाकी से कहा था कि पिछला चुनाव मैंने हवा गाड़ी से लड़ा था. हवा में ही रह गया.
इस बार मैंने जमीन पकड़ी है, अब कौन पैर उखाड़ सकता है. उन्होंने चुनाव प्रचार के लिए बैलगाड़ी और हाथी का सहारा लिया. कलम के जादूगर ने अपने संकलन ‘डायरी के पन्ने’ में चुनावी अनुभव को साझा किया है. उन्होंने लिखा है, चुनाव के चक्रव्यूह में हूं. बिगुल बज गया है. फौज ने कूच कर दी. अब आगे-पीछे देखने का मौका कहां. जो होना होगा, होगा.
चुनाव में प्रचार को लेकर लिखते हैं कि एक सज्जन से चुनाव भर के लिए मोटर गाड़ी देने के लिए बात की थी, लेकिन वह शुरू में ही मुकर गये. बड़ी चोट लगी, लेकिन तय किया कि इस बार बैलगाड़ी व हाथी से चुनाव प्रचार करूंगा. एक मित्र ने हाथी दे दिया था बस पूरी लड़ाई बैलगाडी व हाथी पर लड़ ली.
प्रचार के लिए दोस्त से लिया था हाथी
1957 के चुनाव में बेनीपुरी जी ने बैलगाड़ी, हाथी व साइकिल से प्रचार किया था. उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बराती की तरह लोग उनके पीछे चलते थे. बेदौल के विजय राय ने प्रचार के लिए अपना हाथी दिया था. बेनीपुरी चुनाव प्रचार के बारे लिखते हैं कि हाथी पर बैठे-बैठे बदन अकड़ जाता था. यह कमबख्त जानवर चलता है तो सारा बदन झकझोर देता है. बैलगाड़ी तो भी वही है. उसमें चरमर और देहात की टूटी-फूटी सड़कें.
अपने लिए बैलगाड़ी, कार्यकर्ताओं केलिए साइकिल: बेनीपुरी जी ने अपने लिए बैलगाड़ी व कार्यकर्ताओं के लिए साइकिल की व्यवस्था की थी. गांव में भी मित्र से छह-सात सौ रुपये लेकर 30 साइकिल की मरम्मत करवा दी थी. ये 30 कार्यकर्ता जिस ओर चलते गांव-गांव से साइकिलों का तांता लग जाता.
चुनावी अभियान चरम पर था. 12 मार्च को चुनाव का परिणाम आया. बेनीपुरी जी ने कांग्रेस प्रत्याशी पर 2646 वोट से विजय प्राप्त की. जीत की खुशी का जिक्र करते हुए लिखा है कि परिणाम के बाद होली का पर्व था. ऐसी होली जिंदगी में कभी नहीं खेली थी. सारा गांव उल्लास में नाच रहा था.