गया में इन दिनों पूरा भारत नजर आ रहा है। राजस्थानी पगड़ी वाले, दक्षिण की सफेद लुंगी वाले और मराठी टोपी वाले अलग-अलग आसानी से पहचाने जा सकते हैं। देशभर के शहरों और गांवों के लोग आ रहे हैं। पितृ पक्ष में यहां करीब 2 लाख पिंडदान का अनुमान है। मुंबई के कारोबारी कन्हैयालाल तायल पिता और दादा का पिंडदान करने आए हैं और पंडाजी ने अपने बहीखातों में तायल को उनके दादा के 1970 और पिता के 1998 के हस्ताक्षर दिखा कर चौंका दिया है। दरअसल गया के पंडे अपने जजमानों की वंशावली ‘बहीखाता’ में दर्ज करते हैं। लाल कपड़ों में लिपटे बहीखातों में आने वाले का नाम-पता, आने की तारीख दर्ज की जाती है।

साथ आए संबंधियों का नाम भी लिखा जाता है। यहां के प्रमुख विष्णुपद मंदिर प्रबंध समिति के सचिव गजाधर लाल पाठक बताते हैं कि कई पंडों के पास जजमानों के 200 साल पुराने यानी करीब 6-7 पीढ़ियों तक के रिकॉर्ड हैं। चांद चौरा, राजेंद्र आश्रम जैसे इलाकों में करीब तीन हजार पंडों के परिवार रहते हैं। अलग-अलग राज्य और जिले इन पंडों के बीच बंटे हुए हैं। जैसे ही कोई गया पहुंचकर अपने जिले का जिक्र करता है, फिर भले ही गेस्टहाउस में पता ही क्यों न दर्ज कराया हो, संबंधित जिले के पंडे तक जानकारी पहुंचा दी जाती है। पंडों का नेटवर्क इतना तेज है कि मिनटों में उस जिले के पंडे का संपर्क जजमान से करा दिया जाता है। खास बात यह है कि यहां करीब 480 गेस्ट हाउस में से 400 पंडों के हैं।

थाना-तहसील के हिसाब से रखते हैं रिकॉर्ड, इनमें पुरखों के दस्तखत भी दर्ज : पंडों के पास जजमानों का रिकॉर्ड तहसील और शहरों का रिकॉर्ड थाना क्षेत्र के अनुसार दर्ज है। पहले परगना के अनुसार जानकारियां दर्ज की जाती थीं। कुछ पंडों के पास पोथियों की त्रि-स्तरीय व्यवस्था है। पहली पोथी इंडेक्स की होती है, जिसमें संबंधित जिला और उसके गांव का नाम दर्ज होता है। इस इंडेक्स से पता चलता है कि जजमान का रिकॉर्ड किस पोथी में है। दूसरी पोथी में जजमान के दस्तखत, परिवार की जानकारी और फाेन नंबर दर्ज होता है। तीसरी पोथी में कार्यस्थल की जानकारी होती है। जानकारियां पीढ़ी-दर-पीढ़ी अपडेट होती हैं। श्राद्ध पक्ष के बाद इन बहीखातों के प्रिजर्वेशन का काम शुरू होने जा रहा है।

Input : Dainik Bhaskar

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