राज्य में पुरानी भूमि संबंधी दस्तावेज, विशेष रूप से सर्वे खतियान, कैथी लिपि में लिखे होने के कारण विशेष सर्वेक्षण प्रक्रिया में रैयतों और सर्वे कर्मियों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था। इन समस्याओं को देखते हुए, राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग ने कैथी लिपि को सरलता से समझने और पुराने दस्तावेजों को पढ़ने में सहायक एक पुस्तिका प्रकाशित करने का निर्णय लिया। यह पुस्तिका विभागीय वेबसाइट पर भी उपलब्ध कराई गई है।

कैथी लिपि में लिखे दस्तावेजों को हिंदी में पढ़ने और समझने के लिए लोग निजी विशेषज्ञों या पुराने सरकारी कर्मियों का सहारा लेते थे, जिससे कई बार अनावश्यक शुल्क वसूली की शिकायतें भी सामने आईं। इन शिकायतों के बाद, विभाग ने आम लोगों की समस्याओं के समाधान हेतु कैथी लिपि पर एक समर्पित पुस्तिका प्रकाशित की।

राजस्व एवं भूमि सुधार मंत्री, डॉ. दिलीप कुमार जायसवाल, ने अपने कार्यालय में इस पुस्तिका का अनावरण किया। इस अवसर पर विभाग के अपर मुख्य सचिव श्री दीपक कुमार सिंह, सचिव श्री जय सिंह, और भू-अभिलेख निदेशक श्रीमति जे. प्रियदर्शिनी भी मौजूद थीं। पुस्तिका के प्रकाशन में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के शोध छात्र श्री प्रीतम कुमार का विशेष योगदान रहा।

इस पुस्तिका का उद्देश्य रैयतों को कैथी लिपि की जानकारी देना है, ताकि वे अपने दस्तावेजों का स्वयं अवलोकन कर सकें और सर्वेक्षण प्रक्रिया में आने वाली दिक्कतों को कम कर सकें।

विभाग ने कैथी लिपि की जानकारी देने के लिए 7 जिलों, जैसे पश्चिम चंपारण, दरभंगा, समस्तीपुर, सीवान, सारण, मुंगेर, और जमुई में तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया। इन कार्यक्रमों में विशेष सर्वेक्षण कर्मियों को प्रशिक्षित किया गया। जल्द ही अन्य जिलों में भी इस तरह के प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।

इस पहल से उन सभी रैयतों को लाभ होगा जिनके पास भूमि स्वामित्व के पुराने दस्तावेज कैथी लिपि में हैं। इस पुस्तिका की सहायता से वे अपने दस्तावेजों को समझ सकेंगे और उनकी जमीन के स्वामित्व का निर्धारण सरल और पारदर्शी प्रक्रिया के तहत हो सकेगा।

राजस्व विभाग की इस पहल को राज्य में भूमि स्वामित्व और दस्तावेजों से जुड़ी समस्याओं के समाधान की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। इससे न केवल दस्तावेजों को समझने में सरलता होगी, बल्कि रैयतों को अनावश्यक वसूली और धोखाधड़ी से भी बचाया जा सकेगा।

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