गोपालगंज सहित पूरे सूबे में अब भगवान शिव से जुड़े आध्यात्मिक महत्व वाले रुद्राक्ष की व्यावसायिक खेती होगी। इसके लिए पहली बार एयर लेयरिंग तकनीक से हाजीपुर के जढुआ में स्थित वानिकी अनुसंधान एवं प्रसार केन्द्र में पौधे तैयार किए गए हैं।
यह केन्द्र वन उत्पादकता संस्थान के अधीन संचालित है। पूर्वोत्तर राज्यों के पहाड़ी इलाके में उगने वाले रुद्राक्ष के पौधे का बिहार की जलवायु में परीक्षण भी सफल रहा है। फिलहाल जून-जुलाई के बरसात में इसके पांच सौ पौधे लगाए जाएंगे। इसके अलावे दो हजार पौधे तैयार करने की प्रक्रिया चल रही है। आगामी सीजन से राज्य के सभी जिले के वन विभाग की नर्सरी में इसके पौधे पर्याप्त संख्या में किसानों के लिए उपलब्ध कराए जाने की योजना है। इससे किसानों को रुद्राक्ष के दाने व इसकी लकड़ी बेच कर अच्छी नगदी आमदनी होगी। इसकी लकड़ी काफी मजबूत व फर्नीचर बनाने के लिए उपयुक्त होता है।
क्या है एयर लेयरिंग तकनीक
रुद्राक्ष के तने को छील कर उस पर घास व मिट्टी का लेप चढ़ाया जाता है। इससे तने में पोषक तत्व का प्रवाह ऊपर की ओर रुक जाता है। फिर मिट्टी व घास के लेप को बाइंडिंग कर दिया जाता है जिससे वहां जड़ निकल आते हैं। इसके बाद तने को मदर ट्री से काट कर पौधे तैयार किए जाते हैं।
बीज से तैयार पौधा नहीं करता विकास
वैज्ञानिकों के अनुसार सूबे की जलवायु में इसके बीज से उगने वाले पौधे की तुलना में एयर लेयरिंग तकनीक वाले पौधे में जल्दी फल लगते हैं व इसका विकास भी तेजी से होता है।
रुद्राक्ष की खेती से फायदे
- पौधे लगाने के पांच से छह वर्ष में निकलने लगते हैं रुद्राक्ष के दाने
- आध्यात्मिक महत्व के कारण एक, सात व नौ मुखी रुद्राक्ष होता है महंगा
- रुद्राक्ष की लकड़ी होती है काफी मजबूत,बनाए जाते हैं फर्नीचर
- एयर लेयरिंग तकनीक वाले पौधे तेजी से बढ़ते हैं जल्दी लगते हैं फल
रुद्राक्ष की व्यावसायिक खेती के लिए एयर लेयरिंग तकनीक से इसके पौधे तैयार किए गए हैं। इसका बिहार की जलवायु में प्रयोग सफल रहने के बाद अब इसकी बड़ी संख्या में पौधे तैयार किए जा रहे हैं। -आदित्य कुमार,वैज्ञानिक वन उत्पादकता संस्थान,रांची
Input : Hindustan