23 साल की उम्र में हम सब सामान्य तौर पर क्या करते है – कॉलेज की पढ़ाई, कोई नौकरी या नौकरी की तलाश.. नहीं तो फ़िर जिंदगी की मौज मस्ती.. वैसे जिंदगी तो ठीक से शरू भी नहीं होती 23 साल की उम्र में.. लेक़िन बिहार के बेगूसराय जिला के रहने वाले लेफ्टिनेंट ऋषि रंजन सिंह ने भारत माता के लिये इसी उम्र में अपने जान की कुर्बानी दे दी.. शहीद ऋषि कश्मीर में पोस्टेड थे, जिनकी शहादत इसी 30 अक्टूबर को हो गयी. ऋषि अपने माँ – बाप के इकलौते लड़का थे, आगामी 29 नवंबर को ही उनकी बहन की शादी भी थी.
शहीद ऋषि की कुर्बानी देखकर 18 साल की उम्र में अंग्रेजों से लड़ते- लड़ते शहादत हासिल करने वाले खुदीराम बोस की एक बार फ़िर याद आ गई, अपने जीवन के यौवन में ही वतन के लिये लेफ्टिनेंट ऋषि का जान देना.. इससे बड़ी कुर्बानी और क्या होगी..
ऋषि के क़ुबार्नी की खबरें टेलीविजन मीडिया के लिये एक समान्य ख़बर प्रतित होती है.. जबकि एक बूढ़े अभिनेता के बेटे की खबर सुबह से लेकर शाम तक दौड़तीं है.. इसे मैं पूर्ण रूप से मानसिक विकृति समझता हूं.. एक अभिनेता का अय्यास बेटा, शहीद ऋषि जैसे कर्मवीरों के चरण की धूल भी नहीं है.. निर्णय आपको करना है – हमारी प्रेरणा कौन हो.
शहीद ऋषि के कुर्बानी को याद करने के साथ- साथ, पथिक मन में चिंतन भी ज़रूरी है.. 23 साल की उम्र में हम क्या कर रहे थे / या क्या कर रहे है.. आगामी दिवाली इस चिंतन के साथ अपने भीतर भी परिवर्तन लाने का प्रयास होना चाहिए.. इस मिट्टी को हमें भी कुछ देना.. जो मिट्टी हमें सबकुछ दे रही है. माँ भारती के सच्चे सपूत लेफ्टिनेंट ऋषि आपको नमन है.. जय हिन्द..
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