आज 28 मई को दुनियाभर में Menstrual Hygiene Day मनाया जाता है। महिलाओं महिलाओं के लिए बड़े बदलाव की तैयारी चल रही है। अब बाजार में महिलाओं के लिए सैनिटरी नैपकिन की जगह सैनिटरी कप बाजार में उपलब्ध हो चला है। माना जा रहा है कि नैपकिन से कचरे की मात्रा काफी बढ़ रही है और यह पर्यावरण के लिए नुकसानदेह है। दि क्लीन इंडिया जनरल के मुताबिक भारत में सालाना 43.4 करोड़ सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल होता है जिससे सालाना 9000 टन कचरे बनते है।
नैपकिन को डिकंपोज होने में 500-800 साल लगते हैं
जनरल के मुताबिक, इस नैपकिन में प्लास्टिक मिला होता है, इसलिए इसे डिकंपोज होने में 500-800 साल लगते हैं। जरनल के मुताबिक ये नैपकिन सेहत के साथ पर्यावरण के लिए भी नुकसानदेह है। हालांकि बाजार में अब बायोडेग्रेडेबल नैपकिन भी उपलब्ध है। इन नैपकिन से अगले कदम के रूप में सैनिटरी कप का इस्तेमाल शुरू हो गया है। इस सैनिटरी कप की कीमत 300-1000 रुपए के बीच है। जो आठ से दस साल तक काम करता है।
यह कप बेहद आरामदायक होता है
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, इस कप की ऑनलाइन मांग काफी अधिक चल रही है। खबर के मुताबिक इस कप की डिमांड मेट्रो से अधिक छोटे शहरों में हो रही है। इन शहरों में होशियारपुर, जमशेदपुर, पटना, कोटा जैसे शहर शामिल हैं।
खबर में विशेषज्ञों के हवाले से कहा गया है कि शुरू में इस कप को लेकर अविवाहित लड़कियों में इस बात की आशंका थी कि इस कप के इस्तेमाल से कहीं उनकी वर्जिनिटी तो खतरे में नहीं पड़ जाएगी। खबर में विशेषज्ञों के हवाले से कहा गया है कि ऐसा कुछ नहीं है और यह कप इतना आरामदायक है कि महिलाएं इसे निकालना भूल जाती है। इस कप को महिलाएं पीरिएड के दौरान इस्तेमाल करती है और पीरिएड समाप्त होने पर उसे निकाल कर साफ करके रख लेती है। दोबारा पीरिएड आने पर नैपकिन की जगह फिर से इस कप का इस्तेमाल करती है। इस कप की लाइफ 8-10 साल की है।
अकेले भारत में 35 करोड़ महिलाएं इस बाजार का हिस्सा बन चुकी है
रिसर्च फर्म एलायड मार्केट रिसर्च के मुताबिक वर्ष 2022 तक महिलाओं की महावारी से जुड़े बाजार का कारोबार आकार 42.7 अरब डॉलर का हो जाएगा। अकेले भारत में 35 करोड़ महिलाएं इस बाजार का हिस्सा बन चुकी है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अभी मेट्रो जैसे शहरों में रहने वाली अधिकतर लड़कियों एवं महिलाओं को यह पता नहीं है कि इस कप का इस्तेमाल कैसे किया जाता है। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक प्लास्टिक पदार्थ से बने नैपकिन हेल्थ के लिए कई बार काफी खतरनाक हो जाते हैं और इससे कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी तक होने की आशंका रहती है।
केले के पत्ते से आसानी से मिट्टी में मिल जाने वाले पैड का निर्माण शुरू हो गया है
स्वच्छता अभियान के बाद से लोग महिलाओं की स्वच्छता को लेकर खुलकर बात करने लगे है और हर महिलाओं को सस्ते में पैड मुहैया कराने की मुहिम चलाई जा रही है। इस मुद्दे को लेकर पैडमैन नामक हिन्दी मूवी भी बन चुकी है। इन दिनों केले के पत्ते से आसानी से मिट्टी में मिल जाने वाले पैड का निर्माण शुरू हो गया है। कई गैर सरकारी संगठन इस काम में लगे हुए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि आने वाले समय में महिलाओं की स्वच्छता एक बड़ा मुद्दा एवं कारोबार का एक बड़ा बाजार बनकर उभरेगा क्योंकि अब की महिलाएं जागरूक है जो हमेशा विकल्प की तलाश में रहती है।
Input : Dainik Bhaskar