सुप्रीम कोर्ट आज अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अ’त्याचार नि’वारण) संशोधन का’नून 2018 की संवैधानिक वैधता को बरकार रखा है। यानी अगर किसी के खि’लाफ इस का’नून के तहत के’स दर्ज होता है, तो बगैर जांच के उसकी गि’रफ्तारी होगी। इस का’नून के तहत एससी/एसटी के खि’लाफ अ’त्याचार के आ’रोपितों के लिए अग्रिम ज’मानत के प्रा’वधान को ख’त्म कर दिया गया है।
कोर्ट ने कहा है कि मामला दर्ज करने के लिए प्राथमिक जांच आवश्यक नहीं है। जस्टिस अरुण मिश्र, जस्टिस विनीत सरन और जस्टिस रविंद्र भट की पीठ ने आज फैसला सुनाया।
गौरतलब है कि पिछले साल अक्टूबर में, पीठ ने संकेत दिया था कि यह तत्काल गिरफ्तारी और अग्रिम जमानत पर रोक लगाने के लिए एससी / एसटी अधिनियम में केंद्र द्वारा किए गए संशोधनों को बरकरार रखेगा। कोर्ट ने इस दौरान कहा था,’हम किसी भी प्रावधान को कम नहीं कर रहे हैं। इन प्रावधानों को कम नहीं किया जाएगा। कानून वैसा ही होना चाहिए जैसा वह था। उन्हें छोड़ दिया जाएगा क्योंकि यह समीक्षा याचिका और अधिनियम में संशोधनों पर निर्णय से पहले था।’
अदालत ने इस दौरान यह भी कहा था कि यह भी स्पष्ट किया जाएगा कि एससी / एसटी कानून के तहत किसी भी शिकायत पर कोई कार्रवाई करने से पहले पुलिस प्राथमिक जांच कर सकती है। अगर प्रथम दृष्टया में उसे शिकायतें झूठी लगती हैं।
Input : Dainik Jagran