देश-विदेश में मुजफ्फरपुर की पहचान बन चुकी शाही लीची इस बार लोगों को कुछ खास मिठास नहीं दे पायी। तेज धूप और 40 डिग्री के तापमान में शाही लीची झुलस गई। उत्तर बिहार में बारिश नहीं होने के कारण शाही लीची के अच्छे फल नहीं निकले। अब चायना लीची से ही किसान व लोगों को उम्मीद है। हालांकि, किसानों का मानना है कि चायना लीची में अन्य वर्षों से कम फल निकला है। इसकी गुणवत्ता भी कुछ खास नहीं है।

मौसम के कारण लीची के बिगड़े उत्पादन ने किसानों को कर्ज में डूबो दिया है। लीची की लागत मूल्य भी नहीं निकल रही है। लागत के आधे मूल्य पर ही लीची बेचने को किसान मजबूर हैं। किसान भी अब इस उम्मीद में हैं कि चायना लीची की बिक्री से उन्हें कुछ मुनाफा हो सकेगा।

अनुसंधान केंद्र का भी कुछ खास नहीं मिल रहा मार्गदर्शन : पिछले कुछ सालों से शाही लीची की गुणवत्ता में लगातार गिरावट आ रही है। किसानों के अनुसार राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र मुशहरी का मार्गदर्शन भी शाही लीची के गुणवत्ता सुधारने में काम नहीं आ रही है। किसानों की माने तो वह अपने अनुभव के आधार पर लीची की खेती कर रहे है। अनुसंधान केंद्र का कोई भी वैज्ञानिक लीची बगानों में पहुंच कर कोई उपचार नहीं कर रहे हैं। शाही लीची की न तो गुणवत्ता में सुधार हो रहा है, न ही लीची टिकने की अवधि में बढ़ोत्तरी हो रही है।

लागत के आधी कीमत पर बेचने को मजबूर

लीची किसान एसके द्विवेदी के अनुसार एक एकड़ लीची बगान पर 35-40 हजार रुपये खर्च हुआ। खराब उत्पादन होने से व्यापारी लीची की आधी कीमत भी नहीं दे रहे हैं। बंदरा के लीची किसान संजय कुमार ने बताया कि सवा दो एकड़ में लीची का फल लगा हुआ है। लीची को बचाने के लिए 1.08 लाख की लागत से बगीचे में सबमर्सेबल लगाया। बावजूद डेढ़ लाख की लीची 57 हजार में बेचनी पड़ी।

Input : Hindustan

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