मुजफ्फरपुर की लीची से लिचमिस और ड्राई फ्रूट तैयार किया जायेगा। दरअसल राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केन्द्र मुजफ्फरपुर के निदेशक डॉ. विकास दास ने ड्राई फ्रूट और लिचमिस बनाने की दो तकनीक के पेंटेट के लिए केंद्र सरकार को आवेदन भेजा है। इस तकनीक की मदद से तीन किलो लीची से एक किलो ड्राई फ्रूट और चार किलो से एक किलो लिचमिस तैयार किया जा सकता है। सबसे खास बात इसमें ये हैकि इन दोनों उत्पादों को एक वर्ष तक आसानी से रखा जा सकता है। लोग भोजन के बाद इसे सुपारी या ईलाइची की तरह खा सकते हैं।

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लीची अनुसंधान केन्द्र के पूर्व वैज्ञानिक डॉ. एसके पूर्वे ने थाईलैंड और चीन की तरह भारत में भी ड्राइ लीची व लिचमिस बनाने का प्रयोग किया था। अनुसंधान केन्द्र के निदेशक डॉ. दास ने जानकारी दी कि बीते नवंबर में लिचमिस और दिसंबर में ड्राई लीची की तकनीक के पेटेंट को लेकर आवेदन किया गया है। इस तकनीक से चीन और थाईलैंड में अच्छा कारोबार हो रहा है। भारत में लीची का अधिक उत्पादन होने के बाद भी तकनीक विकसित नहीं होने से उत्पाद तैयार नहीं हो पा रहा था।

निदेशक डॉ. दास के मुताबिक जिले में 14,400 हेक्टेयर में लीची के बाग है। प्रति वर्ष 1.20 लाख टन लीची का उत्पादन होता है। अब तक लीची का स्क्वेश, पल्प, रसगुल्ला और जूस तैयार होता था जबकि लिचमिस और ड्राई लीची प्रयोग के तौर पर तैयार होता था। पेंटेंट से लीची का कारोबार बढ़ेगा और पूरे देश में इसकी मांग बढ़ेगी। कारोबार बढ़ने से लीची उत्पादक किसानों की आमदनी में भी बढ़ोतरी होगी।

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