बिहार की संस्कृति का अभिन्न हिस्सा और ‘बिहार कोकिला’ के रूप में प्रसिद्ध लोकगायिका शारदा सिन्हा का 5 नवंबर की रात निधन हो गया। छठ महापर्व के नहाय-खाय की संध्या पर आई इस खबर से पूरे बिहार में शोक की लहर दौड़ गई है। उनके लोकप्रिय छठ गीतों के बिना यह पर्व अधूरा सा लगता था, और उनके जाने से लोकसंगीत के इस महापर्व पर एक खालीपन आ गया है।

शारदा सिन्हा का पार्थिव शरीर एम्स से दिल्ली एयरपोर्ट होते हुए बुधवार सुबह 9:40 बजे इंडिगो फ्लाइट के माध्यम से पटना पहुंचेगा। वहां दोपहर 12 बजे के बाद उनके पार्थिव शरीर को अंतिम दर्शन के लिए रखा जाएगा, ताकि उनके प्रशंसक और चाहने वाले उन्हें अंतिम विदाई दे सकें। गुरुवार को उन्हें राजकीय सम्मान के साथ गुलबी घाट पर अंतिम विदाई दी जाएगी।

शारदा सिन्हा के बेटे अंशुमान सिन्हा ने जानकारी दी है कि उनकी मां का अंतिम संस्कार पटना के गुलबी घाट पर किया जाएगा, जहां कुछ समय पहले उनके पिता का भी अंतिम संस्कार किया गया था। गुलबी घाट पटना का एक ऐतिहासिक स्थल है, और वहां शारदा सिन्हा को राजकीय सम्मान के साथ विदा किया जाएगा।

लोकगायिका शारदा सिन्हा न केवल एक अद्वितीय गायिका थीं, बल्कि बिहार की संस्कृति और परंपरा की प्रतीक भी थीं। उनके गीतों ने न केवल लोगों को भावुक किया बल्कि समाज को जोड़ने का काम भी किया। उनका जाना बिहार की एक अमूल्य धरोहर की क्षति है। हालांकि, उनका संगीत और उनकी आवाज़ सदैव लोगों के दिलों में जीवित रहेगी, और बिहार की लोकसंस्कृति को संजोकर रखने में उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा।

बिहार सरकार ने शारदा सिन्हा को राजकीय सम्मान देने का निर्णय लिया है, जो उनकी सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने के प्रति सम्मान का प्रतीक है। उनका संगीत, उनकी विरासत और उनके गीत हमारी स्मृतियों में सदैव अमर रहेंगे।

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