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नवरात्र में इन राशि वालों पर रहेगी मां दुर्गा की विशेष कृपा, आप भी जान लें आपनी राशि का हाल

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29 सितंबर, रविवार से शारदीय नवरात्र आरंभ हो रहे हैं। नवरात्रों का हिंदू धर्म में बहुत बड़ा महत्व बताया जाता है। धार्मिक मान्यताओं की मानें तो इस दिन माता कैलाश पर्वत से धरती पर अपने मायके आती हैं। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार माता का धरर्ती पर आगमन होने से उसका असर हर राशि के जातक पर पड़ता है। ऐसे में आइए जानते किस राशि के जातक के लिए कैसा रहेंगे नवरात्र के 9 दिन।

मेष राशि-
इस राशि के जातकों के लिए माता की उपासना के ये 9 दिन बेहद खास रहने वाले हैं। मेष राशि के लोगों को इन 9 दिनों में व्यापार और नौकरी में तरक्की मिलेगी। हालांकि इस राशि के लोगों को सेहत से जुड़ी समस्या भी रह सकती है जैसे पेट में दर्द । इन लोगों को लाल फूलों के साथ लाल चंदन की माला से देवी का पूजन करना चाहिए।

वृषभ राशि-
इस राशि के व्यक्तियों को करियर में सफलता मिलेगी। लेकिन शत्रु आपके रास्ते में आने की कोशिश करेंगे। अपने शत्रुओं से निपटने के लिए आपको नवरात्रों में सफेद चंदन की माला से देवी के मंत्रों का जाप करना चाहिए।

मिथुन राशि-
इस राशि के जातकों की नौकरी की तलाश इन नवरात्रों में पूरी हो सकती है। सफलता प्राप्त करने के लिए  तुलसी की माला से गायत्री मंत्र का जाप करें। प्रसाद में मां को खीर को भोग लगाएं।

कर्क राशि-
इस राशि के जातकों को थोड़ा सतर्क रहने की जरुरत है। विशेष रुप से व्यवसाय कर रहे लोगों को अपने पार्टनर से धोखा मिल सकता है। जिसकी वजह से आपको तनाव भी हो सकता है।  इन लोगों को नवरात्र में सफेद चंदन की माला से जप करके माता रानी को दूध से बनी मिठाई का भोग लगाना चाहिए।

सिंह राशि-
लंबे समय बाद इस राशि के जातकों को कोई अच्छी खबर सुनने को मिल सकती है। इन लोगों को अपनी किसी लंबी बीमारी से छुटकारा मिल सकता है। माता को प्रसन्न् करने के लिए इस राशि के लोगों को पूरे 9 दिनों तक गुलाबी रत्न से बनी माला मंत्र ज-ाप करने के लिए इस्तेमाल करनी चाहिए।

कन्या राशि-
इस राशि के जातकों को सेहत को लेकर थोड़ा सतर्क रहना चाहिए। इन लोगों को बाहर का खाना खाने से बचना चाहिए। इन लोगों को तुलसी की माला से गायत्री दुर्गा मंत्रों का जाप करना चाहिए।

तुला राशि-
इस राशि के जातकों को धन राशि के संयोग बन रहे हैं।

वृश्चिक राशि-
इस राशि के जातकों को जल्द ही कोई खुशखबरी सुनने को मिलेगी। इस राशि के जातक जल्द ही अपना कोई करोबार शुरु कर सकते हैं। इस राशि के लोगों को नवरात्र में गरीबों की सहायता करने से लाभ होगा।

धनु राशि-
इस राशि के जातकों के घर में नवरात्र में मां लक्ष्मी का वास बने रहने के संकेत हैं। आप कोई नया वाहन, घर खरीद सकते हैं। भौतिक सुखों की प्राप्ति होगी। इस राशि के जातक माता को कोई पीली मिठाई का भोग लगाएं।

मकर-
इस राशि के जातकों के खर्च में बढ़ोत्तरी हो सकती है। आर्थिक नुकसान भी हो सकता है। परेशानियों से बचने के लिए मां को भोग में हलवे का प्रसाद चढ़ाएं।

कुंभ राशि-
इस राशि के जातकों के लिए यह 9 दिन अच्छे रहने वाले हैं। आर्थिक तरक्की में आने वाली सभी बाधाएं जल्द दूर हो जाएंगी। इन लोगों को माता को उड़द से बनी दाल की मिठाई का भोग लगाना चाहिए।

मीन राशि-
इस राशि के जातकों के लिए यह समय अनुकूल रहने वाला है। व्यापार में तरक्की होगी, यात्रा करते समय सावधानी बरतें। मां को प्रसन्न् करने के लिए पीली मिठाई और केले का भोग लगाएं।

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Input : Hindustan

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नवरात्रि विशेष: देश का वह शक्तिपीठ जहां होती है 1051 दीपों से माता की आरती

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देश में नवरात्रि शुरू हो चुकी है। आज नवरात्रि का पहला दिन है। आज हम आपको देश के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताएंगे जहां 1051 दीपों से माता की आरती होती है। माता हरिसिद्धि का मंदिर देश का एकमात्र शक्तिपीठ है जहां 1051 दीपकों से माता की आरती की जाती है।

बता दें कि यह मंदिर मध्य प्रदेश के उज्जैन में प्रसिद्ध महाकालेश्वर मंदिर के आसपास के क्षेत्र महाकाल वन में स्थित है। यह 51 शक्ति पीठ में शामिल है। नवरात्रि के अवसर पर देशभर के भक्तजन यहां माता हरिसिद्धी का आशीर्वाद लेने आते है।

श्री हरसिद्धि माता शक्तिपीठ मंदिर की संपूर्ण जानकारी | Harshidhi… –  DHARMWANI.COM

इस मंदिर के पुजारी पंडित रामचंद्र गिरी का कहना है कि माता का दरबार ब्रह्म मुहूर्त में ही खुल जाता है। इसके बाद दूध, दही, शक्कर, जल आदि से पंचामृत पूजन और अभिषेक किया जाता है। माता का जब सोलह श्रृंगार हो जाता है तब कपाट भक्तों के लिए खोला जाता है। मंदिर परिसर में निर्मित 1051 दीप मालिकाएं को आरती के वक्त प्रज्वलित किया जाता है। बता दें कि यहां पर माता की कोहनी गिरी थी, जिसके बाद यहां पर शक्तिपीठ की स्थापना हुई।

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बताया जाता है कि माता हरिसिद्धि सम्राट विक्रमदित्य की आराध्य देवी है। माना जाता है कि विक्रमादित्य मंदिर में माता की पूजा करने आते थे। ऐसा कहते है कि नवरात्रि के मौके पर माता सबको मनवांछित फल देती है।

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कलश स्थापना आज 11 बजे तक, मां शैलपुत्री की होगी पूजा

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नवरात्र के पहले दिन मां दुर्गा के शैलपुत्री स्वरूप की पूजा की जाती है। पर्वतराज हिमालय के यहां पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। पूर्व जन्म में ये प्रजापति दक्ष की कन्या थीं, तब इनका नाम सती था। इनका विवाह भगवान शंकरजी से हुआ था। प्रजापति दक्ष के यज्ञ में सती ने अपने शरीर को भस्म कर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। पार्वती और हैमवती भी उन्हीं के नाम हैं। उपनिषद् की एक कथा के अनुसार, इन्हीं ने हैमवती स्वरूप से देवताओं का गर्व-भंजन किया था। नव दुर्गाओं में प्रथम शैलपुत्री का महत्व और शक्तियां अनन्त हैं। नवरात्र पूजन में प्रथम दिन इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है। इस दिन उपासना में योगी अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित कर साधना करते हैं।

मां शैलपुत्री को लाल रंग बहुत प्रिय है। उन्हें लाल रंग की चुनरी, नारियल और मीठा पान भेंट करें।

नवदुर्गाओं में शैलपुत्री का सर्वाधिक महत्व है। पर्वतराज हिमालय के घर मां भगवती अवतरित हुईं, इसीलिए उनका नाम शैलपुत्री पड़ा। अगर जातक शैलपुत्री का ही पूजन करते हैं तो उन्हें नौ देवियों की कृपा प्राप्त होती है।

सभी राशियों के लिए शुभ। मेष और वृश्चिक के लिए विशेष फलदायी।

शैलपुत्री के पूजन से संतान वृद्धि और धन व ऐश्वर्य की शीघ्र प्राप्ति होती है। मां सर्व फलदायी हैं।

भक्त पूजा के समय लाल और गुलाबी रंग के वस्त्र धारण करें।

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घटस्थापना मुहूर्त 22 मार्च 2023

● सुबह 623 से 732 के बीच (लाभ और अमृत के शुभ चौघड़िया मुहूर्त)

● 930 से 11 बजे के बीच स्थिर लग्न (वृष) का शुभ मुहूर्त रहेगा

( प्रात11 बजे तक अवश्य कलश स्थापना कर लें)

नवरात्र की तिथियां

प्रतिपदा 22 मार्च (मां शैलपुत्री)

द्वितीय 23 मार्च (मां ब्रह्मचारिणी)

तृतीया 24 मार्च (मां चन्द्रघण्टा)

चतुर्थी 25 मार्च (मां कुष्मांडा)

पंचमी 26 मार्च (मां स्कंदमाता)

षष्टी 27 मार्च (मां कात्यायनी)

सप्तमी 28 मार्च (मां कालरात्रि)

अष्टमी 29 मार्च (मां महागौरी)

नवमी 30 मार्च (मां सिद्धिदात्री) और श्रीराम नवमी ( श्रीराम जन्मोत्सव)

कलश स्थापना की विशेष बातें

● कलश ईशान कोण या पूरब-उत्तर दिशा में स्थापित करें

● कलश पर स्वास्तिक बनाएं। मौली बांधें

● कलश पर अष्टभुजी देवी स्वरूप 8 आम के पत्ते लगाएं

● रोली, चावल, सुपारी, लौंग, सिक्का अर्पित करते हुए कलश स्थापित करें।

अखंड ज्योति के नियम

● घी और तेल दोनों की अखंड ज्योति जला सकते हैं।

● घी का दीपक दाहिनी तरफ और तेल का दीपक बाएं तरफ होगा।

● दीपक में एक लौंग का जोड़ा अवश्य अर्पित करें।

● अखंड ज्योति कपूर और लौंग से आरती करते हुए जलाएं।

Source : Hindustan

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चैत्र नवरात्रि के दिन नौका पर सवार होकर आएंगी मां दुर्गा

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कल से चैत्र नवरात्र प्रारंभ हो रहे हैं और ‘नल’ नवसंवत्सर 2080 भी। इस संवत्सर के राजा बुध और मंत्री शुक्र हैं। इस नवरात्र पर देवी दुर्गा का आगमन नाव पर हो रहा है और प्रस्थान हाथी पर। इस बार मां का आगमन और प्रस्थान दोनों ही अत्यंत शुभ हैं। इससे वर्षभर देश के लिए शुभ फलदायक स्थितियां बनेगी। इस वर्ष नवरात्र पूरे नौ दिन के हैं यानी कोई तिथि घट या बढ़ नहीं रही है। देवी भागवत के अनुसार मां दुर्गा का वाहन शेर है। लेकिन हर वर्ष नवरात्र में देवी अलग-अलग वाहनों पर सवार होकर आती हैं।

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नवरात्र में देवी किस वाहन पर सवार होकर आएंगी, इसके दिन तय हैं। देवी भागवत में इस संबंध में एक श्लोक है— ‘शशिसूर्ये गजारूढ़ा शनिभौमे तुरंगमे। गुरौ शुक्रे दोलायां बुधे नौका प्रकीर्तिता॥’

रविवार या सोमवार के दिन कलश की स्थापना होने पर देवी दुर्गा हाथी पर सवार होकर आती हैं। देवी का हाथी पर सवार होकर आना शुभ होता है। यह अच्छी वर्षा का प्रतीक है। साथ ही मेहनत का फल और मां की कृपा प्राप्त होती है। शनिवार या मंगलवार के दिन नवरात्र प्रारंभ होने पर देवी का वाहन घोड़ा होता है। मां दुर्गा का घोड़े पर आना सत्ता परिवर्तन या युद्ध का प्रतीक है। यह विपक्ष के लिए शुभ और सत्ता पक्ष के लिए प्रतिकूल स्थिति बनाता है।

बृहस्पतिवार या शुक्रवार के दिन नवरात्र प्रारंभ हो तो देवी पालकी में बैठकर आती हैं। यह अशुभता का प्रतीक है। इससे महामारी, प्राकृतिक आपदा, उपद्रव, दंगे और जन हानि जैसी स्थितियां पैदा होती हैं।

इसी प्रकार बुधवार के दिन नवरात्र की शुरुआत हो तो देवी दुर्गा नाव पर सवार होकर आती हैं। देवी का नाव पर आगमन सब तरह से शुभ होता है। भरपूर बारिश और अच्छी फसल होती है। कष्ट दूर होने के साथ-साथ सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

यह स्वाभाविक है कि जब देवी का आगमन होगा, तो उनकी विदाई भी होगी। माता की विदाई दशमी को होती है। उस दिन रविवार या सोमवार हो तो देवी भैंसे पर सवार होकर जाती हैं। इसका प्रभाव राष्ट्र पर अशुभ होता है। यह रोग और शोककारक स्थितियां बनाता है।

शनिवार या मंगलवार के दिन दशमी होने पर देवी की सवारी मुर्गा होती है। इसके अशुभ फल होते हैं। इससे दुखों और कष्टों में वृद्धि होती है। अगर विदाई बुधवार या शुक्रवार के दिन हो तो देवी दुर्गा हाथी पर सवार होकर जाती हैं। यह शुभ माना जाता है। इसका अर्थ है कि आपको आपके अच्छे कार्यों का फल मिलेगा।

बृहस्पतिवार के दिन दशमी हो तो देवी दुर्गा की सवारी मनुष्य होती है। यह शुभ फलदायक होती है। इससे देश में चारों तरफ सुख-शांति और संपन्नता होती है।

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