शहर की धरती से ऐसे अनेकों लोगों ने जन्म लिया है जिन्होंने राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर पर मुजफ्फरपुर का नाम रौशन किया है. इसी कड़ी में एक और नाम शिराज़ शब्बीर का जुड़ गया है. जिनके प्रयासों से बाल विवाह के विरुद्ध स्विट्ज़रलैंड के जिनेवा स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में बिहार की आवाज़ गुंजी. माड़ीपुर निवासी स्व. डॉ शब्बीर अहमद के पुत्र शीराज़ ने पांचवां “संयुक्त राष्ट्र युवा कार्यकर्ता शिखर सम्मेलन 2023” (United Nations Young Activists Summit 2023) को संबोधित करते हुए बताया कि किस प्रकार उन्होंने किशनगंज जैसे अति पिछड़े इलाके में बाल विवाह से पीड़ित एक किशोरी को इतना सशक्त बनाया कि वह न केवल बिहार में इस सामाजिक बुराई के खिलाफ चेहरा बन गई बल्कि उनके प्रयासों से उसे वर्ष 2023 का भारत की ओर से संयुक्त राष्ट्र यूथ आइकॉन के रूप में भी चुना गया.
प्रिस्टीन चिल्ड्रन स्कूल से स्कूली शिक्षा, लंगट सिंह कॉलेज से स्नातक और समाज सेवा में स्नातकोत्तर के छात्र रहे शिराज़ शब्बीर पिछले डेढ़ दशकों से देश के विभिन्न राज्यों में सामाजिक मुद्दों विशेषकर बाल सुरक्षा पर काम कर रहे हैं. वह बताते हैं कि पहली बार इस अवार्ड के लिए किसी ऐसी भारतीय लड़की को चुना गया जो कि न केवल बाल विवाह के खिलाफ मुखर अभियान चला रही है बल्कि वह खुद भी इसका शिकार रही है. उन्होंने बताया कि जब साल 2021 में वह अंतर्राष्ट्रीय संस्था ‘सेव द चिल्ड्रेन’ में बिहार प्रभारी के रूप में काम कर रहे थे तभी बाल विवाह की प्रताड़ना से जूझ रही रौशनी के संघर्ष को उन्हें करीब से जानने का अवसर मिला. जिसके बाद इन्होने उसके साथ हुए अन्याय के खिलाफ न केवल उसे ही सशक्त आवाज बनाने का बल्कि बाल विवाह के खिलाफ लड़ने वाली वीरांगना के तौर उन बच्चियों के सामने प्रस्तुत करने का ठान लिया जो किसी कारणवश इस कुचक्र में या तो फंसने वाली हैं या इसकी पीड़िता के रूप में इस अत्याचार को सह रही हैं.
शिराज़ ने दिसंबर 2022 में अपनी सेवा से त्यागपत्र देकर इंडिपेंडेंट कंसल्टेंट के तौर काम करना शुरू किया और इस केस स्टडी को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उठाने का फैसला किया। साल 2023 की शुरुआत में इन्होंने इस बाल विवाह पीड़िता की न केवल काउंसलिंग की बल्कि संयुक्त राष्ट्र के प्रतिष्ठित यूथ अवार्ड के लिए भी इसकी कहानी को नामांकित कराया. चयन प्रक्रिया में संयुक्त राष्ट्र में पूरे विश्व से लगभग 34000 प्रविष्टियां आई थी जिनमें से सिर्फ 5 प्रतियोगी जो समाज के लिए कुछ विशिष्ट अभियान चला रहे हों, उन्हें चुना जाना था. नामांकन प्रक्रिया के दौरान वर्चुअल माध्यम के द्वारा साक्षात्कार और फील्ड में अंतर्राष्ट्रीय मीडिया के द्वारा इनके काम को वेरिफाई कराना महत्वपूर्ण चरण था. इतना ही नहीं, संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय की ओर से शिराज़ के इस कार्य को अन्य स्रोतों के माध्यम से भी विभिन्न स्तरों पर वेरिफाई कराया गया. जिसके बाद उन्हें इस अवार्ड के लिए जिनेवा आमंत्रित किया गया. इस यूथ समिट में भारत ओर से शीराज़ के अतिरिक्त अफ़्रीकी देश सूडान से नसरीन, दक्षिण अमेरिकी देश कोलंबिया से फ्रांसिस्को, पश्चिम अफ़्रीकी देश बुर्किना फासो से मैमुना बा तथा म्यांमार से स्वेदोल्लाह को भी चुना गया था।
शिराज़ बताते हैं कि संयुक्त राष्ट्र के मंच पर भारत का प्रतिनिधित्व करना उनके लिए गौरव का क्षण था. इस भागीदारी ने समाज के प्रति उनकी ज़िम्मेदारी को और भी अधिक बढ़ा दिया है. वह कहते हैं कि सामाजिक और आर्थिक रूप से अति पिछड़े किशनगंज और उसके आसपास के ग्रामीण इलाकों में धड़ल्ले से बाल विवाह जारी है. माँ बाप की गरीबी का फायदा उठा कर दलाल किशोरियों को शादी के नाम पर बेच रहे हैं. कई बार यह मुद्दा राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियां भी बनी. लेकिन अभी तक इस पर पूरी तरह से लगाम नहीं लगाया जा सका है. ऐसे में अब उनका लक्ष्य बिहार के इन दूर दराज़ ग्रामीण इलाकों की किशोरियों को ही इसके विरुद्ध जागरूक करना है ताकि वह खुद इस सामाजिक बुराई को हिम्मत के साथ ना कह सकें.