बिहार के शुभम कुमार को संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में पहला स्थान प्राप्त हुआ. इसके बाद से ही बिहारिपन के भान का नगारा हर तरफ़ बजने लगा. हर बिहारी इस बात से इतराने लगा कि बिहार के माटी में जन्मे शुभम ने हमें गौरव का भान कराया. उन इतराने वालो में, मैं भी था. बड़ी गौरव के साथ, एक ख़बर लिख डाला- यू ही नही कहा जाता बिहार को आई.ए.एस फैक्ट्री.. कुछ समय बाद ही मुझे खुद की लिखी पंक्तियां भी ढकोसला लगने लगी.. आखिर शुभम कुमार के सफ़लता में उसके राज्य का योगदान कितना है- इस बात के मूल्यांकन के लिये चिंतन किया, परिणाम निकला नगण्य.
शुरुआती दौर के पढ़ाई के बाद टॉपर शुभम कुमार की पढ़ाई बिहार के बाहर से ही हुई. अमूमन सभी सफ़ल लोगो के साथ यहीं बात है. बिहार में अगर उच्च शिक्षा की बात करें तो बिहार में कुछ खास नही है. विश्वविद्यालय और कॉलेजों की संख्या और यहां के पढ़ाई की गुणवत्ता से सब वाकिफ़ है. दिल्ली और भोपाल जैसे नगरों की तरह प्राइवेट कॉलेजो और विश्वविद्यालय की संख्या भी बिहार में नही है. उच्च शिक्षा में तो निजी निवेशकों का भी ध्यान बिहार पर नही रहता.
बिहार में पलायन करने वालो में बड़ी जनसंख्या उच्च शिक्षा लेने वाले विद्यार्थियों की भी है. जब यहीं छात्र पलायन कर बिहार से बाहर अपना शिक्षा प्राप्त करे , और सफलता का डंका पीटे तो इसमें बिहार और बिहारिपन कि क्या भूमिका. इन सब बातों का समसामयिक चिंतन होना भी बेहद ज़रूरी है.
बिहार में उच्च शिक्षा के लिये कॉलेज और विश्वविद्यालय का बड़ा अभाव है. जो पहले से स्थापित है, वो भी मात्र राजनीति का अखाड़ा बनकर रह गए है. इन सब मूलभूत विषयों से भागकर अगर हम शुभम के सफलता में अपना भान ढूंढ रहे है तो यह भी समझना होगा कि टॉपर शुभम के सफलता में बिहार का योगदान कितना… यह भी जानने की कोशिश करनी होगी, कितने सफ़ल विद्यार्थियों ने अपनी पढ़ाई बिहार से पूरी की या प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी बिहार में रहकर किया… इन सब बातों का जवाब आपके मन में सवाल पैदा करेगा. यह शुभम कुमार की निजी सफ़लता है, बाकी बिहार अब भी उच्च शिक्षा में कुछ ख़ास नहीं कर पाया है.
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