मुफलिसी के हर दौर को देखा। ठेले पर भूंजा व सत्तू बेचकर गुजारा किया। कभी सामान बिका तो कभी रह गया। लेकिन, हिम्मत नहीं हारी। बेटे को डॉक्टर बनाने का सपना पूरा किया। हाल ही में दिल्ली के सफदरगंज अस्पताल में उसकी तैनाती हुई है। यह कहानी 60 वर्षीय बलराम की है, जिन्होंने अब जलेबी, पकौड़ी व लिट्टी की छोटी सी दुकान खोल ली है।

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मूलत: उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ निवासी बलराम 10 साल से समस्तीपुर में रह रहे हैं। ताजपुर रोड में दुकान चलाते हैं। किराये के घर में परिवार के साथ रहते हैं। उनका एकमात्र पुत्र जयप्रकाश बचपन से ही पढ़ाई-लिखाई में होनहार रहा। आजमगढ़ से वर्ष 2007 में मैट्रिक अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होने के बाद पिता से लोगों की सेवा के लिए डॉक्टर बनने की इच्छा जाहिर की। पिता ने हौसला बढ़ाया। इंटरमीडिएट के बाद गोरखपुर में रहकर मेडिकल की तैयारी की। वर्ष 2012 में प्रवेश परीक्षा पास कर मध्य प्रदेश के एक मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया। एमबीबीएस करने के बाद इसी मार्च में उसने दिल्ली के सफदरगंज अस्पताल में अपनी सेवा देनी शुरू की है।

खुद नहीं पढ़ सका, बेटे ने सपना किया साकार : बलराम कहते हैं, बेटे की सफलता की खबर सुनते ही जीवन के सभी कष्ट भूल गया। गरीबी में किसी प्रकार गृहस्थी की गाड़ी चलाई। पेट काट कर रुपये जमा किए। बैंक से ऋण भी लिया। ठेले के बाद अब छोटी सी दुकान खोल ली है। डॉ. जयप्रकाश ने बताया कि उन्होंने डॉक्टर बनकर गरीबों की सेवा के लिए यह रास्ता चुना। पिता की मजबूरियों से वाकिफ था, इसलिए जमकर मेहनत की। माता-पिता का संघर्ष, शिक्षकों की मेहनत और साथियों के प्रोत्साहन ने हमेशा प्रेरणा दी। इससे सफलता मिली। जिला परिषद अध्यक्ष प्रेमलता ने बताया कि गरीबी के बाद भी बेटे को इस मुकाम तक पहुंचाना प्रशंसनीय है। सामाजिक कार्यकर्ता मनीष यादव का कहना है कि बलराम से समाज के लोगों को सीख लेनी चाहिए। गरीबी किसी का रास्ता नहीं रोक सकती। अधिवक्ता राजेंद्र झा कहते हैं कि वे बलराम को लंबे समय से देख रहे। उन्होंने गरीबी के बाद भी मेहनत से बेटे को मुकाम दिलाया।
इनपुट : दैनिक जागरण