बिहार का प्रसिद्ध सोनपुर मेला पूरे विश्व में अपनी भव्यता के लिए प्रसिद्ध हैं। अपने आप में स्वर्णिम महत्ता समेटे यह मेला बिहार की सांस्कृतिक व धार्मिक पहचान हैं। बिहार के हरिहर क्षेत्र में लगने वाले इस मेले को हरिहर क्षेत्र मेला व छत्तर मेला भी कहते हैं।
सोनपुर मेले की शुरूआत कब से हुई उसके बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं हैं परंतु यह माना जाता हैं कि शायद इसकी शुरूआत उत्तर वैदिक काल में हुई हो।
महापंडित राहुल सांत्यान इसे शुंगकाल का मानते हैं। क्योंकि शुंगकालीन कई पत्थर व अन्य अवशेष इसके मठों व मंदिरों में दिखाई पड़ते हैं।
मौर्य वंश के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य ने इस मेले से 500 हाथी खरीदकर सिकंदर के सेनापति सेल्युकस को भेंट में दिया था। अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र ने भी यहां से सफेद हाथी खरीदा था। प्रसिद्ध यात्री ह्वेनसांग के यात्रा वृतांतों में भी इस क्षेत्र का उल्लेख मिलता है। वहीं 1857 की क्रांति के दौरान स्वतंत्रता के लिए लड़ाई में इस मेले ने अपनी भूमिका निभाई। क्रांतिकारियों ने इस मेले से कई औजार अंग्रेजों के विरुद्ध इकट्ठे किए।
दूसरी तरफ यदि हम पौराणिक मान्यता को देखे तो कहा जाता हैं कि भगवान के दो भक्त हाथी (गज) और मगरमच्छ (ग्राह) के रूप में धरती पर उत्पन्न हुए। कोणाहारा घाट पर जब गज पानी पीने आया तो उसे ग्राह ने मुंह में जकड़ लिया और दोनों के बीच युद्ध प्रारंभ हो गया। कई दिनों तक यह युद्ध चलता रहा। युद्ध के दौरान जब गज कमजोर पड़ने लगा तो उसने भगवान विष्णु की आराधना की। तब भगवान विष्णु ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन सुदर्शन चक्र चलाकर दोनों के बीच के युद्ध को खत्म किया। इस स्थान पर दो जानवरों का युद्ध हुआ था इस कारण यहां पशु की खरीददारी शुभ माना जाता है। हालांकि पशुओं के साथ शोषण को रोकने के लिए अब कई पशुओं की खरीददारी यहां कम कर दी गई हैं। इसी स्थान पर हरि (विष्णु) और हर (शिव) का हरिहर मंदिर है। जहां प्रतिदिन सैकड़ों श्रद्धालु श्रद्धा भाव से पहुंचते हैं।लोगों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण प्रभु राम ने सीता स्वयंवर में जाते समय किया था।