एक दरोगा किसी संत की शिक्षाओं और सिद्धि से बहुत प्रभावित था। उसने अब तक उसके बारे में सुना ही था। कभी मिलना नहीं हुआ था। उन्हें गुरु मानने की इच्छा से वह उनकी खोज में निकल पड़ा। लगभग आधा रास्ता पार करने के बाद दरोगा को केवल धोती पहने एक साधारण सा व्यक्ति दिखाई दिया। दरोगा ने उससे पूछा कि फलां संत का आश्रम कहां है?.
वह व्यक्ति दरोगा की बात अनसुनी करके अपना काम करता रहा। भला दरोगा को यह कैसे सहन होता? लोग तो उसके नाम से ही थर-थर कांपते थे। उसने आव देखा न ताव, लगा उसे उल्टा-सीधा बोलने। इस पर भी व्यक्ति मौन रहकर अपना काम ही करता रहा। दरोगा से ना रहा गया तो उसने आग बबूला होते हुए उसे एक ठोकर मारी और आगे बढ़ गया।
थोड़ा आगे जाने पर दरोगा को एक और आदमी मिला। दरोगा ने उसे भी रोक कर पूछा, ‘क्या तुझे पता है कि वह फलां संत कहा रहते हैं?’
वह व्यक्ति बोला,‘उन्हे कौन नहीं जानता, वह तो उधर ही रहते हैं, जिधर से आप आ रहे हैं। यहां से थोड़ी ही दूर पर उनका आश्रम है। मैं भी उनके दर्शन के लिए ही जा रहा हूं। आप मेरे साथ चलिए।’
दरोगा मन ही मन प्रसन्न होते हुए साथ चल दिया। राहगीर जिस व्यक्ति के पास दरोगा को लेकर गया, उसे देख कर दरोगा लज्जित हो उठा। वह वही व्यक्ति थे, जिसे उसने ठोकर मारी थी।
वह संत के चरणों में पड़कर क्षमा मांगने लगा। बोला, ‘महात्मन्, मुझे क्षमा कर दीजिए, मुझसे अनजाने में अपराध हो गया।’ बात सुनकर संत हंसते हुए बोले,‘भाई। इसमें बुरा मानने की क्या बात? कोई मिट्टी का घड़ा भी खरीदता है तो ठोक-बजाकर देख लेता है। तुम तो मुझे गुरु बनाने आए थे।’
इस कहानी से मिलती है ये 3 सीख-
– अपना धैर्य कभी न खोएं। सहनशीलता ही सफलता की कुंजी है।
– जीवन में हमेशा विनम्र रहें। मदद मांगते वक्त विनम्रता बेहद आवश्यक है।
– ऐसा कुछ न करें जिसका आपको गुस्सा उतरने के बाद पछतावा हो