सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में एक सरकारी कर्मचारी के निधन के बाद उसकी बेटी को अनुकंपा के आधार पर नौकरी देने से इनकार कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि कानून पिता के निधन के बाद बेटियों को नौकरी दिए जाने की वकालत करता है और इस लिहाज से मौजूदा मामले में बेटी अपने पिता की जगह मध्य प्रदेश पुलिस में नौकरी के लिए पात्र भी है लेकिन विधवा मां ने उसे नौकरी दिए जाने की संस्तुति नहीं की है, जो मध्य प्रदेश सरकार के नियमों के मुताबिक जरूरी है.
मध्य प्रदेश के इस मामले में सरकारी कर्मचारी की मृत्यु के बाद विधवा मां की तरफ से पुलिस विभाग को आवेदन दिया गया था कि अनुकंपा के आधार पर उसके बेटे को सब इंस्पेक्टर की नौकरी दी जाए. लेकिन दिसंबर 2015 में अनफिट होने के चलते बेटे को नौकरी देने से इनकार कर दिया गया. इसके बाद बेटी ने अर्जी दाखिल करके नियुक्ति की मांग की. पिता के निधन के बाद बेटी ने मां के खिलाफ प्रॉपर्टी के बंटवारे का केस दाखिल कर रखा है, जो अभी तक अदालत में पेंडिंग है. इसकी वजह से मां ने बेटी को नौकरी दिए जाने की संस्तुति नहीं की. इस आधार पर विभाग ने भी उसकी अर्जी खारिज कर दी. उसके बाद मामला मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में पहुंचा.
हाईकोर्ट ने मध्य प्रदेश पुलिस (नॉन गजटेड) सर्विस रूल्स 1997 की धारा 2.2 का हवाला देते हुए बेटी को नौकरी देने का आदेश जारी करने से इनकार कर दिया. इस नियम में कहा गया है कि सरकारी कर्मचारी की मृत्यु के बाद आश्रित पति या पत्नी अगर अनुकंपा के आधार पर नौकरी के योग्य नहीं है या फिर वह खुद नौकरी नहीं चाहते तो अपने बेटे या अविवाहित बेटी की नियुक्ति के लिए संस्तुति कर सकते हैं. हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ बेटी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.
सुप्रीम कोर्ट में बेटी की तरफ से एडवोकेट दुष्यंत पाराशर ने दलील दी कि सर्वोच्च न्यायालय का 2021 का कर्नाटक बनाम सीएन अपूर्वा जजमेंट है कि शादीशुदा बेटियां भी अनुकंपा नियुक्ति के लिए पात्र हैं. इस पर जस्टिस अजय रस्तोगी और सीटी रवि की बेंच ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के उस जजमेंट में कुछ गलत नहीं है, लेकिन मौजूदा मामले में मध्य प्रदेश सरकार के नियम आड़े आ रहे हैं, जिनमें साफ कहा गया है कि बालिग बच्चे की अनुकंपा नियुक्ति के लिए विधवा मां की संस्तुति जरूरी है. हम इससे अलग नहीं जा सकते, इसलिए विशेष अनुमति याचिका खारिज की जाती है.
Source : News18