राष्ट्र गौरव के प्रतीक महाराणा प्रताप की आज यानी 9 मई को जयंती है। महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया के शौर्य, त्याग और बलिदान की गाथाएं आज भी भारत के कोने-कोने में सुनाई देती है। महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को मेवाड़ा वंश के शासक उदय सिंह के परिवार में हुआ था। वीर योद्धा महाराणा प्रताप के युद्ध-कौशल के कायल उनके दुश्मन भी थे।
7 फीट 5 इंच लम्बे और 110 किलो वजनी महाराणा प्रताप 81 किलो का भारी-भरकम भाला और छाती पर 72 किलो के कवच से सुशोभित रहते थे। इन्होने मुगल बादशाह अकबर का भी घमंड चूर कर दिया था। 30 सालों तक अथक परिश्रम करने के बाद भी अकबर उन्हें बंदी नहीं बना सका। अकबर को इन्होंने 1577,1578 और 1579 के युद्ध में पराजित किया था। कहते है कि महाराणा प्रताप ने जंगल में घास की रोटी खाकर और जमीन पर सोकर राते गुजार दी लेकिन अकबर के आगे नहीं झुके।
महाराणा प्रताप उदय सिंह द्वितीय और महारानी जयवंता बाई के सबसे बड़े पुत्र थे। मुगलों के बार-बार हुए हमलों से इन्होने मेवाड़ की रक्षा की। राजपूताना आन, बान और शान के लिए कभी समझौता नहीं किया। विपरीत से विपरीत परिस्थिति आने पर भी इन्होने हार नहीं मानी। 20 साल तक सोने, चांदी और महलों को छोड़कर मेवाड़ की जंगलो में भटकते रहे। मरने से पहले अपना खोया हुआ 85% मेवाड़ फिर से जीत लिया था।
महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक भी बहुत बहादुर था। महाराणा के साथ उनके घोड़े को भी इतिहास हमेशा याद रखेगा। जब मुगल सेना महाराणा प्रताप के पीछे पड़ी हुई थी। तब चेतक महाराणा को अपनी पीठ पर लिए 26 फीट नाले को लांघ गया था। इस नाले को मुगल पार न कर सके। चेतक की ताकत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उसके मुंह के आगे हाथी की सूंड लगाई जाती थी। चेतक ने महाराणा को बचाने के लिए अपने प्राण त्याग दिए थे। भारत वर्ष चेतक के अमर बलिदान पर गर्व करता है।
कहते है कि वीर महाराणा प्रताप की 11 रानियां थीं। अजबदे पंवार मुख्य महारानी थी और उनके 17 पुत्रों में से अमर सिंह मेवाड़ के उत्तराधिकारी थे। अमर सिंह मेवाड़ के 14वें महाराणा बने। म 19 जनवरी 1597 को महाराणा प्रताप का निधन हुआ था। महाराणा की मृत्यु की खबर सुनकर अकबर की आंखें भी नम हो गई थीं।