बिहार सरकार ने ट्यूबवेल लगाने के लिए जारी किए गए कोष के संबंध में 1740 पूर्व और वर्तमान मुखियाओं से उपयोगिता प्रमाण पत्र मांगा है. यह ट्यूबवेल उनके इलाकों में कृषि उपज बढ़ाने के लिए लगाए गए थे. लघु जल संसाधन विभाग में अतिरिक्त मुख्य सचिव परमार रवि मनुभाई ने रविवार को बताया कि अगर वो एक महीने में प्रमाण पत्र देने में नाकाम रहते हैं तो उनके खिलाफ पुलिस में मामला दर्ज कराया जाएगा. उन्होंने कहा कि जिला विकास आयुक्तों (डीडीसी) से कहा गया है कि वो 1,740 पूर्व और मौजूदा मुखिया को नोटिस जारी करें और उनसे उनके इलाकों में ट्यूबवेल लगाने के संबंध में उपयोगिता प्रमाणपत्र मांगें. अगर वो एक महीने के अंदर उपयोगिता प्रमाण पत्र देने में नाकाम रहते हैं तो उनके खिलाफ प्राथमिकी (एफआईआर) दर्ज कराई जाएगी.
मनुभाई ने कहा कि इन पंचायत पदाधिकारियों ने उन्हें राज्य ट्यूबवेल योजना के तहत दिए गए कोष के संबंध में कई साल से उपयोगिता प्रमाणपत्र जमा नहीं कराएं हैं. इन पदाधिकारियों में ज्यादातर पूर्व मुखिया हैं. उन्होंने कहा कि प्रमाणपत्र जमा नहीं कराने से इस बात की आशंका रहती है कि कहीं कोष का दुरुपयोग तो नहीं हुआ है. उन्होंने कहा कि यह निर्देश पिछले महीने जारी किए गए थे. विभाग ने लखीसराय और शेखपुरा जिले के कई मौजूदा और पूर्व मुखिया के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने की प्रक्रिया शुरू कर दी है, क्योंकि वो निर्धारित वक्त में उपयोगिता प्रमाणपत्र देने में नाकाम रहे हैं.
अतिरिक्त मुख्य सचिव ने यह बताने से इनकार किया कि कुल कितनी राशि के उपयोगिता प्रमाण पत्र लंबित हैं. उन्होंने कहा कि मानक ट्यूबवेल लगाने की अनुमानित लागत डेढ़ लाख रुपये है. यह इलाके पर निर्भर करता है. यह योजना सरकार ने उन किसानों की आय बढ़ाने के लिए शुरू की है जो लगातार सूखे का सामना कर रहे हैं. (भाषा से इनपुट)