मुजफ्फरपुर । अमरेंद्र तिवारी । लीची की बेहतर मार्केटिंग और ब्रांडिंग के लिए पैकिंग स्तर को अपग्रेड किया जाएगा। इसके लिए लीची उत्पादक किसानों को इंडियन इंस्टीट्यूट आफ पैकेजिंग के माध्यम से प्रशिक्षण दिलाया जाएगा। वन डिस्ट्रिक्ट-वन प्रोडक्ट योजना में मुजफ्फरपुर की लीची शामिल होने के बाद भारतीय आयात-निर्यात बैंक ने मार्केटिंग व ब्रांडिंग के स्तर पर पहल की है। तीन दिसंबर को मुशहरी स्थित राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र में आयात-निर्यात बैंक, लीची उत्पादक संघ, लीची विज्ञानी व कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के अधिकारियों की बैठक में इस मुद्दे पर बात हुई थी। इसमें उत्पादक संघ द्वारा बेहतर पैकेजिंग का प्रस्ताव दिया गया था। मार्च के अंतिम सप्ताह में अग्रणी किसानों को प्रशिक्षण के लिए मुंबई भेजने की योजना बन सकती है।
लकड़ी की जगह कार्टन के इस्तेमाल का प्रस्ताव
लीची उत्पादक संघ के अध्यक्ष बच्चा प्रसाद सिंह का कहना है कि फल की पैकिंग लकड़ी की पेटी की जगह कार्टन में होनी चाहिए। बैठक में इसका प्रस्ताव दिया गया था। उनके अनुसार, कार्टन पैकिंग से लीची की गुणवत्ता बनी रहेगी और पैकेजिंग भी आकर्षक होगी। वजन और जरूरत के अनुसार छोटे-बड़े कार्टन का चयन किया जा सकेगा। आकर्षक प्रिंटिंग से लीची उत्पादक अपनी ब्रांडिंग भी कर सकेंगे। लकड़ी की पैकिंग में यह सुविधा नहीं है।
लकड़ी के कार्टन की कीमत 75 रुपये है, जबकि कार्टन 40 से 50 रुपये में आ जाता पड़ता है। इसकी कीमत आकार पर भी निर्भर करती है। लीची पैकिंग के लिए पैकेजिंग संस्थान द्वारा डिजाइन किए गए कार्टन का इस्तेमाल किया जाए तो लीची की सेल्फ लाइफ बढ़ जाएगी।
पेड़ों पर अच्छा मंजर, बेहतर उत्पादन की उम्मीद
अनुसंधान केंद्र के विज्ञानी के अनुसार, पिछले साल अच्छा मंजर आने के बावजूद मौसम की प्रतिकूलता के कारण फलों को काफी नुकसान हुआ था। छोटे फल झड़ गए। इसका असर उत्पादन पर पड़ा। एक लाख टन उत्पादन की उम्मीद थी, लेकिन 50 हजार टन ही हो सका था। इस साल शुरुआती महीने में बारिश होने के कारण लीची बागों की जोताई और खाद डालने का अवसर नहीं मिला। फिर भी पेड़ों पर अच्छा मंजर आया है। मौसम की अनुकूलता रही तो 75 हजार टन उत्पादन का अनुमान है। मुजफ्फरपुर राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के निदेशक डा. एसडी पांडे ने कहा कि भारतीय आयात-निर्यात बैंक किसानों के तकनीकी प्रशिक्षण के लिए आगे आ रहा है। उससे बेहतर समन्वय बना है। इस पहल के आगे बढऩे से लीची उत्पादकों को बेहतर बाजार मिलने में सहूलियत होगी।
Source : Dainik Jagran