भारत में ब्रिटेन की एक दिन की उच्चायुक्त बनकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा से गोरखपुर का मान बढ़ाने वाली आयशा खान के घर शिवपुर शहबाजगंज में खुशी का माहौल है। घर पर बधाई देने वालों का तांता लगा रहा। मां सीमा खान तो फूले नहीं समा रहीं। बातचीत में बताया कि आयशा शुरू से ही मेधावी रही है। वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में उसकी रुचि रही है। गोरखपुर में कार्मल में हाईस्कूल की पढ़ाई के दौरान वह प्रथम स्थान पर रही। वह पढ़ाई के अलावा लिखने की भी शौकीन है।

मां गृहणी, पिता बैंक हैं बैंक मैनेजर

एक दिन के लिए ब्रिटिश उचायुक्त बनने वाली आयशा की मां गृहणी हैं। पिता जुनैद अहमद खान पूर्वांचल बैंक जैतपुर गोरखपुर में ब्रांच मैनेजर हैं। दादा समशुल हक खान पूर्वोत्तर रेलवे मुख्यालय गोरखपुर स्थित वाणिज्य विभाग में इंस्पेक्टर के पद से रिटायर्ड हैं। वह आयशा को शुरू से ही पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित करते रहे। बड़ी बहन जुवेरिया खान डेंटिस्ट हैं, जो वर्तमान में दुबई में है।

94 फीसद अंकों से उत्तीर्ण की थी इंटर की परीक्षा

कार्मल गल्र्स स्कूल से हाईस्कूल की पढ़ाई करने के बाद आयशा ने सेंट जोंस स्कूल खोराबार से इंटरमीडिएट की परीक्षा 94 फीसद अंकों से उत्तीर्ण किया। इसके बाद मास कम्यूनिकेशन की पढ़ाई के लिए दिल्ली चली गई। मां की इच्‍छा है कि वह आइएएस बने, लेकिन आयशा अभी अपनी पढ़ाई पूरी करने में लगी है।

Image

एक दिन बनीं उच्‍चायुक्‍त

आयशा भारत में एक दिन के लिए ब्रिटेन की उच्चायुक्त बनीं। आयशा ने ब्रिटिश उच्चायुक्त के सरकारी आवास पर दैनिक जागरण से बातचीत में कहा कि यह कामयाबी वास्तविक सपने के सच होने जैसा है। गोरखपुर शहर के शिवपुर शहबाजगंज की रहने वाली आयशा ने कहा कि केवल महानगरों की ही नहीं, बल्कि छोटे शहरों और कस्बों की लड़कियों में भी बड़े मुकाम छूने का जज्बा और क्षमता है। इन लड़कियों को तलाश है तो बस मौके की जो उन्हें अभी कम मिल पाते हैं।

माता-पिता ने दी पूरी सुविधा

आयशा इस लिहाज से खुद को काफी खुशकिस्मत मानती हैं कि गोरखपुर जैसे शहर की पृष्ठभूमि में भी उनके माता-पिता ने पढ़ाई लिखाई की पूरी सुविधा और आजादी दी। खासकर उनके दादा ने बेहद प्रोत्साहित किया और इसीलिए परिवार ने दिल्ली विश्वविद्यालय के खालसा कालेज में पढ़ने के लिए भेजने में आनाकानी नहीं की।

अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर आयोजित की जाती है प्रतिस्पर्धा

अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस के मौके पर ब्रिटिश उच्चायोग 18 से 23 साल की लड़कियों के लिए एक दिन का ब्रिटिश उच्चायुक्त बनने की प्रतिस्पर्धा आयोजित करता है। इसकी विजेता को बकायदा उच्चायोग में पूरे दिन हाई कमिश्नर की कुर्सी पर बिठाने से लेकर काम को अंजाम देने का मौका दिया जाता है। आयशा को भी चार अक्टूबर को एक दिन के लिए उच्चायुक्त बनने का मौका मिला तो उन्होंने उच्चायोग के अंदर बैठकें करने के बाद कुछ बाहरी समारोहों में भी भाग लिया। पत्रकारिता में मास्टर डिग्री कर रहीं आयशा अध्यापन या कानून के क्षेत्र में अपना मुकाम बनाना चाहती हैं।

Input : Dainik Jagran

I just find myself happy with the simple things. Appreciating the blessings God gave me.