बिहार में इस साल गर्मी के साथ वज्रपात ने भी कहर बरपाना शुरू कर दिया है। मानसून से पहले ही वज्रपात की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। अप्रैल के पहले पखवाड़े में ही वज्रपात से 43 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि पिछले वर्ष अप्रैल में यह आंकड़ा केवल दो था। बीते 9 वर्षों में राज्य में कुल 2371 लोगों की जान वज्रपात की चपेट में आकर जा चुकी है।
इस बार उत्तर बिहार के जिलों में वज्रपात से अधिक जानें गई हैं, जो पहले के आंकड़ों से अलग ट्रेंड दर्शाता है। राज्य में अब तक गया, औरंगाबाद, जमुई, बांका, नवादा, पूर्वी चंपारण, सारण, कटिहार, रोहतास, भागलपुर और बक्सर जैसे जिलों में वज्रपात के कारण भारी नुकसान हुआ है। बुधवार को अकेले बेगूसराय और दरभंगा में 5-5 मौतें हुईं, जबकि मधुबनी में 3 और समस्तीपुर, सहरसा, औरंगाबाद में दो-दो लोगों की जान गई। गुरुवार को 23 और मौतों की पुष्टि की गई है।
वर्ष 2016 से लेकर 2021 के बीच वज्रपात से जान गंवाने वालों की संख्या भी चिंताजनक रही है — 2016 में 114, 2017 में 180, 2018 में 139, 2019 में 253, 2020 में 459 और 2021 में 280 मौतें दर्ज की गईं।
विशेषज्ञों के अनुसार, वज्रपात मुख्य रूप से अत्यधिक गर्मी और वातावरण में बनने वाले क्यूलोनिंबस बादलों के कारण होता है। दोपहर के बाद यह खतरा और बढ़ जाता है। दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉ. प्रधान पार्थसारथी बताते हैं कि अप्रैल-मई के दौरान जैसे-जैसे तापमान बढ़ता है, वैसे-वैसे वज्रपात की घटनाएं तेज हो जाती हैं।
आपदा प्रबंधन विभाग के अध्ययन में यह भी सामने आया है कि वज्रपात से मरने वालों में बड़ी संख्या में ग्रामीण क्षेत्रों के लोग हैं, खासकर वे जो खेतों में काम कर रहे थे। तालाब, जलभराव वाले क्षेत्रों और पेड़ों के पास वज्रपात का खतरा अधिक रहता है, इसलिए ऐसे मौसम में सतर्क रहना बेहद जरूरी है।
वज्रपात कैसे होता है?
बादलों के बीच विद्युत आवेश के कारण वज्रपात होता है। जब विपरीत आवेश वाले बादल एक-दूसरे से टकराते हैं, तो उससे लाखों वोल्ट की बिजली उत्पन्न होती है, जो कभी-कभी धरती तक पहुंचती है और जानलेवा साबित होती है।
बिहार वज्रपात के लिहाज से बेहद संवेदनशील राज्य माना जाता है, और इसके लिए समय रहते लोगों को सतर्क और जागरूक करना आवश्यक है।