हिंदी साहित्य के सूर्य कहे जाने वाले रामधारी सिंह दिनकर की आज पुण्यतिथि है। उन्होंने अपनी ओजपूर्ण रचनाओं से जन-जन में राष्ट्रीय चेतना को जागृत करने का काम किया। रश्मिरथी’, ‘संस्कृति के चार अध्याय’, ‘कुरुक्षेत्र’, ‘चक्रव्यूह’ जैसी उनकी महान रचनाएं साहित्य जगत के लिए वरदान है। रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की गिनती वीर रस के श्रेष्ठ कवियों में होती है। हिंदी साहित्य के क्षेत्र में उनके महान योगदानों के लिए उन्हें पद्म भूषण, ज्ञानपीठ पुरस्कार और साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।
आपको बात दें कि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का जन्म बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया गांव में 24 सितंबर 1908 को हुआ था। दिनकर के पिता एक साधरण किसान थे। वो महज 2 वर्ष के थे, जब उनके पिता का निधन हो गया। दिनकर जी को संस्कृत, बांग्ला, अंग्रेजी और उर्दू भाषा की जानकारी थी। संस्कृति के चार अध्याय’ के लिए साल 1959 में इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। जबकि वर्ष 1959 में प्रथम राष्ट्रपति एवं बिहार के ही लाल राजेंद्र प्रसाद ने इन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया था। ‘उर्वशी’ के लिए इन्हें 1972 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
सुरेंद्र नाथ दीक्षित के कि रिश्ते में रामबृक्ष बेनीपुरी के बहनोई लगते थे , उनके साथ भी इनका रिश्ता खास था। एक बार LS कॉलेज में दीक्षित जी को कोई गंभीर विषय पढ़ाना था, तो मजाक में दिनकर जी ने उनके थैले में किताब की जगह पर ईंट रख दी। दीक्षित जी जब कक्षा में पढ़ाने गए तो जैसे ही उन्होंने किताब निकालने के लिए अपने थैले में हाथ डाला तो उसमें से ईंट बाहर निकली। उसके बाद पूरी क्लास ठहाके से गूंज उठी। एलएस कॉलेज में अभी भी यह किस्सा खूब सुनाया जाता है।
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