मधुबनी (बिहार)। भगवान शिव के वैसे तो देश में कई मंदिर विख्यात हैं, लेकिन यहां हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बता रहे हैं जिससे जुड़ी किंवदंती सुनकर आप हैरान रह जाएंगे। मान्यता है कि यहां इसी स्थान पर भगवान शिव ने अपने भक्त के लिए लाठियां खाईं थी। बाद में यहां अपने आप स्वयंभू शिवलिंग प्रकट हुआ था। शिवलिंग यहां क्यों प्रकट हुआ उसके पीछे भी रोचक कहानी है।

सबसे पहले आपको बता दें कि भगवान शिव का ये चमत्कारी मंदिर बिहार के मधुबनी जिले स्थित भवानीपुर गांव में स्थित है। यहां विराजित शिवलिंग वर्तमान में उग्रनाथ महादेव के नाम से प्रसिद्ध हैं। दरअसल इस क्षेत्र में भगवान शिव के परम भक्त महाकवि विद्यापति रहा करते थे। उन्होंने शिवभक्ति पर कई रचनाएं और गीत लिखे। बता दें कि महाकवि विद्यापति का जन्म सन् 1352 में हुआ। वे भारतीय साहित्य की भक्ति परंपरा के प्रमुख स्तंभों में से एक और मैथिली परंपरा के सर्वोपरि कवि के रूप में जाने जाते हैं।

काम मांगने पहुंचे थे भगवान शिव

पौराणिक कथाओं के मुताबिक महाकवि विद्यापति की इन रचनाओं और भक्ति के कारण भगवान भोलेनाथ उनसे बहुत प्रसन्न थे। इसी खुशी में भगवान भोलेनाथ अपने इस भक्त को दर्शन देने यहां पहुंचे। इसके लिए भगवान भोलेनाथ एक साधारण व्यक्ति का वेष धारण कर यहां पहुंचे और उन्होंने अपना नाम उगना बताया। उन्हें कवि विद्यापति के घर नौकर बनने की इच्छा हुई और उन्होंने महाकवि से काम मांगा। महाकवि की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, लिहाजा उन्होंने उगना (भगवान शिव) को नौकरी पर रखने से मना कर दिया। लेकिन भगवान ने उन्हें सिर्फ 2 वक्त के भोजन पर रखने के लिए तैयार कर लिया।

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एक दिन महाकवि विद्यापति राजा के दरबार में जा रहे तभी तेज गर्मी और धूप के कारण उन्हें प्यास लगी। इस पर उन्होंने उगना (भगवान शिव) से पानी लाने के लिए कहा और खुद वहीं बैठ गए। भगवान शिव ने थोड़ा आगे तक गए और उन्होंने अपनी जटा खोली व एक लौटा जल ले आए। महाकवि विद्यापति ने जब जल पिया तो उन्हें गंगाजल का अहसास हुआ। उन्होंने सोचा कि जंगल के इस क्षेत्र में ये जल कहां से आया। इस पर विद्यापति को संदेह हो गया कि उगना और कोई नहीं बल्कि स्वयं भगवान शिव हैं। इस पर विद्यापति ने उगना को शिव कहकर संबोधित किया तो विद्यापति भगवान शिव के चरणों में पड़ गए। इसके बाद शिव को अपने वास्तविक स्वरूप में आना पड़ा। शिव ने महाकवि विद्यापति के साथ रहने की इच्छा जताई लेकिन इसके लिए उन्होंने ये शर्त रखी कि वे तब तक ही विद्यापति के साथ रहेंगे जब तक किसी भी व्यक्ति को उनका वास्तविक परिचय पता नहीं लग जाता।

विद्यापति ने भगवान शिव की ये शर्त मान ली और फिर भगवान शिव महाकवि विद्यापति के घर नौकर बनकर ही रहे। लेकिन एक दिन उगना (भगवान शिव) से एक गलती हुई और महाकवि की पत्नी ने उगना की चूल्हे की जलती लकड़ी से पिटाई कर दी। उसी समय विद्यापति वहां आए और उनके मुंह से निकल गया कि जिन्हें तुम लकड़ी से मार रही हो वे साक्षात भगवान शिव हैं। जैसे विद्यापति के मुख से ये बात निकली, भगवान शिव अंर्तध्यान हो गए। अपनी भूल का पछतावा करते हुए विद्यापति ने काफी समय तक वनों में शिव को खोजा।

बताया जाता है कि उस समय भगवान शिव को अपने भक्त की ऐसी दशा देखी नहीं गई और उन्होंने विद्यापति को दर्शन दिए और समझाया कि अब वे उसके साथ नहीं रह सकते। लेकिन उगना के रूप में समय उन्होंने महाकवि के साथ गुजारा उसके प्रतीक में अब वे शिवलिंग के रूप में उसके पास विराजमान रहेंगे। इसके बाद इस स्थान पर शिवलिंग प्रकट हुआ, जो वर्तमान में बिहार के मधुबनी जिले स्थित भवानीपुर गांव में उग्रनाथ महादेव के नाम से प्रसिद्ध हैं।

मंदिर की खासियत

भवानीपुर गांव स्थित मंदिर का गर्भगृह थोड़ा नीचे जाकर है। इसमें जाने के लिए 6 सीढ़ियां नीचे उतरना पड़ता है। ये ठीक वैसा ही है जैसे उज्जैन के महाकाल ज्योतिर्लिंग मंदिर के गर्भगृह में जाने के लिए कुछ सीढ़ियां नीचे उतरनी पड़ती हैं। यहां स्थापित शिवलिंग स्वयंभू है जो आधार तल से करीब 5 फीट नीचे हैं। वर्तमान उग्रनाथ महादेव मंदिर 1932 में निर्मित बताया जाता है। कहा जाता है कि 1934 के भूकंप में यहां पूरा इलाका प्रभावित हुआ था लेकिन मंदिर को कुछ नहीं हुआ।मंदिर के सामने एक सरोवर है और इसके पास ही एक कुआं भी है। इसके बारे में मान्यता है विद्यापति के घर नौकरी के समय शिव जी यहीं से पानी निकाला करते था। यही कारण है दूर-दूर से श्रद्धालु इस कुंए का पानी पीने के लिए आते हैं। माघ कृष्ण पक्ष में आने वाला नर्क निवारण चतुर्दशी उगना मंदिर का प्रमुख त्योहार है।

Input : Nai Dunia

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