बिहार विश्वविद्यालय में पढ़ाई करने वाले छात्र-छात्राओं को डिग्री के इंतजार में नौकरी हाथ से निकल जा रही है। जब तक डिग्री हाथ आती है उम्र नौकरी की पार करने के करीब पहुंच जाती है। डमाडोल कॅरियर के बीच शादी भी समय पर नहीं हो पाती है। डिग्री के इंतजार में शादी-ब्याह की उम्र निकल जाती है। यह सुनकर तो ऐसा लगता है कि कोई मजाक कर रहा हो मगर कई छात्र-छात्राओं से जब बात की तो पता चला कि कई साल से यहां के छात्र-छात्राएं यह हालात झेल रहे हैं।
राजभवन ने लंबित परीक्षाओं का आयोजन तथा परीक्षाफल का प्रकाशन जून, 2020 तक हर हाल में करने का आदेश दिया है। निर्धारित तिथि पर परीक्षा आयोजन नहीं होने तथा उसमें विलंब के लिए दोषी कर्मचारी व पदाधिकारियों पर कार्रवाई की चेतावनी दी है। सत्र 2019-22 के स्नातक सत्र में प्रवेश परीक्षा की रस्साकशी को लेकर नामांकन में काफी विलंब हो गया है।
समक्ष स्नातक में 18 पीजी में 10 व प्रोफेशन कोर्स में चार परीक्षा व रिजल्ट कराने का दायित्व है। आप सोचिए कि किस सपने के साथ कोई विद्यार्थी यूनिवर्सिटी में दाखिला लेता है और फिर उसकी ये हालत हो जाती है। तीन साल की स्नातक की डिग्री लेने में पांच साल भी लग जाते हैं। बीएचएमएस कोर्स करने वाले 2016-21 बैच के छात्र बताते हैं कि सेकेंड ईयर में डेढ़ साल से उनकी परीक्षा नहीं हो रही। साढ़े पांच साल में पूरी होने वाली डिग्री के लिए अभी तक फस्र्ट ईयर की परीक्षा ही हो पाई है।
स्नातकोत्तर सेकेंड सेमेस्टर सत्र 2014-16, 2015-17, 2016-18 के दो सौ से अधिक छात्र-छात्राएं स्पेशल परीक्षा के इंतजार में अभी लटके हुए हैं। इसी यूनिवर्सिटी से अंग्रेजी में मास्टर डिग्री कर रही रोमिता श्रीवास्तव ने कहा कि यह सही है कि डिग्री के इंतजार में कई-कई साल लग जाते हैं और इस बीच प्रतियोगी परीक्षाओं में सम्मिलित होने से छात्र वंचित हो जाते हैं। जाहिर है इस बीच कई नौकरियां हाथ से निकल गई रहती है।
मोतिहारी की पीजी की छात्रा अर्चना कुमारी की शादी होने वाली है, लेकिन रिजल्ट और डिग्री के चक्कर में उस पर ग्रहण लगा है। छात्र परिषद बिहार के अध्यक्ष संकेत मिश्रा, छात्र राजद के प्रदेश प्रधान महासचिव चंदन यादव, छात्र लोजपा के विश्वविद्यालय अध्यक्ष गोल्डेन सिंह कहते हैं कि यह मत सोचिएगा कि यह पिछले एक साल में हुआ है। लगातार कई साल से अनदेखी ने इस विश्वविद्यालय की यह हालत कर दी है।
ग्रेजुएशन से पीजी तक समय पर सेशन पूरा नहीं हो पाता। यूनिवर्सिटी को देखकर लगता है कि जानबूझ कर पदों को नहीं भरा जा रहा है। एक तो भर्ती नहीं होती अगर प्रक्रिया शुरू हुई भी तो वह कई साल तक चलती ही रहती है। विश्वविद्यालय में साढ़े आठ सौ पदों पर 26 विषयों के लिए अतिथि शिक्षकों की बहाली के लिए नवंबर से टकटकी लगी है। छात्र, शिक्षित बेरोजगार सब इसमें पीस रहे हैं। छात्र संगठन अवाज भी उठाते हैं मगर किसी विधायक और सांसद को नहीं देखा गया कि वह विश्वविद्यालय प्रशासन पर दबाव बनाया हो। दबाव बनता तो शायद नियुक्तियां होतीं और ये नौबत न आती।
इस बारे में बीआरएबीयू के परीक्षा नियंत्रक डॉ. मनोज कुमार ने कहा कि यह सही है कि सत्र विलंब चलने से परीक्षा व रिजल्ट समय पर नहीं हो पाता था। स्वाभाविक है डिग्री मिलने में विलंब होगा। मगर अब उसमें काफी सुधार हुआ है। तेजी से सबकुछ पटरी पर लौट रहा है।
Input : Dainik Jagran
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