नाम बड़े और दर्शन छोटे, इन दिनों इस जुमले का इस्तेमाल शहरवासी स्मार्ट सिटी मुजफ्फरपुर के लिए कर रहे। उनके लिए स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट मजाक बनकर रह गया है। दो साल से शहर की सूरत बदल देने के बड़े-बड़े दावे किए जा रहे। स्मार्ट सुविधाओं की बात की जा रही। लाखों-करोड़ों की योजनाएं बनाई जा रहीं। लेकिन, सब कागज पर, जमीन पर कुछ नहीं। स्मार्ट सिटी परियोजना के संचालन के लिए बनी मुजफ्फरपुर स्मार्ट सिटी कंपनी प्राइवेट लिमिटेड और कंपनी के प्रोजेक्ट मैनेजमेंट कंसल्टेंट (पीएमसी) श्रेयी इंफ्रास्ट्रक्चर फाइनेंस लिमिटेड कागजी शेर बनकर रह गई हैं। दो साल में कंपनी एक योजना तक जमीन पर नहीं उतार पाई। योजना तो छोड़ दीजिए, अपने लिए ढंग का एक कार्यालय तक नहीं बना सकी। वैसे बैठक, सेमिनार, योजना निर्माण एवं कंसल्टेंट के मेहनताना पर करोड़ों रुपये जरूर खर्च हो गए।

2 साल में जमीन पर नहीं उतर पाई स्मार्ट सिटी की एक भी योजना लंबित पड़े सारे काम

कागजी शेर बनकर रह गई स्मार्ट सिटी और संबंधित कंसल्टेंट कंपनी

कंपनी को काम में लापरवाही नहीं बरतने की थी सख्त हिदायत

परियोजना को जमीन पर उतारने की एक साल पूर्व तय डेडलाइन खत्म : स्मार्ट सिटी परियोजना को जमीनी हकीकत बनाने के लिए सरकार ने एक साल पूर्व डेडलाइन तय कर दी थी। कंसल्टेंट को दो चरणों में 15 अक्टूबर 2018 तक 837 करोड़ की योजना का निविदा निकालने की जवाबदेही सौंपी गई थी। कंसल्टेंट को कार्य में किसी प्रकार की लापरवाही नहीं करने का सख्त निर्देश था। लेकिन, अब तक सिर्फ 208.90 करोड़ की आठ परियोजनाओं के निविदा की प्रक्रिया हो सकी। उनका कार्यान्वयन कब होगा तय नहीं। सरकार ने कंपनी को जुब्बा सहनी व इंदिरा पार्क और शहर को मिथिला पेंटिंग से सजाने का कार्यादेश 10 जुलाई तक जारी करने का निर्देश दिया था, लेकिन वह भी आज तक नहीं हुआ।

शहर को स्मार्ट सिटी बनाने की कवायद चल रही। कार्य की गति बहुत धीमी है। इसे तेज करने की जरूरत है। बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की बैठक में इस पर सवाल उठाएंगे। -सुरेश कुमार, महापौर सह निदेशक स्मार्ट सिटी कंपनी

Input : Dainik Jagran

 

 

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