सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मक़सद नहीं
मेरी कोशिश है, कि यह सूरत बदलनी चाहिए।।
मेरे सीने में नही तो तेरे सीने में सही
हो कहींं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।।
शायद ही ऐसा कोई युवा होगा, जिसने इन पंक्तियों को नहीं गुनगुनाया होगा। कभी संगी- साथियों के बीच गाया नही गाया होगा। इन कविताओं को चलन ऐसा है, कि आज भी युवा गुनगुना रहे है। एहसास ऐसा कि दिल को छू जाए, तराना ऐसा कि जुबां से आप ही निकल आए। हम बात कर रहे काव्य ,गजल एवं उपन्यासों के लेखक एवं कलम के धनी दुष्यंत कुमार का, जिनका आज जन्मदिवस है। जन्मदिवस है,उस ओजस्वी मेधा का जिसकी रचनाएं आज जीवंत और पथप्रदर्शक की भूमिका निभाती है।
जिस समय दुष्यंत कुमार ने साहित्य की दुनिया में अपने कदम रखे उस समय हिन्दी में अज्ञेय तथा गजानन मुक्तिबोध की कठिन कविताओं का बोलबाला था। उस समय आम आदमी के लिए नागार्जुन तथा धूमिल जैसे कुछ कवि ही बच गए थे। इस समय सिर्फ़ 44 वर्ष के जीवन में दुष्यंत कुमार ने अपार ख्याति अर्जित की।
परिवार एवं प्रारंम्भिक जीवन :
दुष्यंत कुमार का जन्म उत्तर प्रदेश में बिजनौर जनपद के तहसील नजीबाबाद के ग्राम राजपुर नवादा में 1 सितंबर 1893 को हुआ। इनकी माता का नाम रामकिशोरी देवी तथा पिता का नाम चौधरी भगवत सहाय था।
दुष्यंत कुमार जी की प्रारंभिक शिक्षा उनके जन्मस्थान से ही हुई। प्रारम्भिक शिक्षा गाँव की पाठशाला (गीतकार इन्द्रदेव भारती के पिता पं चिरंजीलाल के सानिन्ध्य में) तथा माध्यमिक शिक्षा नहटौर(हाईस्कूल) और चंदौसी(इंटरमीडिएट) से हुई। दुष्यंत कुमार ने दसवीं कक्षा से ही कविता लिखना प्रारम्भ कर दिया था।
30 नवंबर 1949 को इंटरमीडिएट के दौरान ही राजेश्वरी कौशिक से विवाह हुआ। बाद में इन्होनें इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिंदी में बी०ए० और एम०ए० किया। पढाई करने के दौरान ही डॉ० धीरेन्द्र वर्मा और डॉ० रामकुमार वर्मा का सान्निध्य प्राप्त हुआ। कला के क्षेत्र में लेखन, काव्य से अपनी धाक जमा चुके कथाकार कमलेश्वर और मार्कण्डेय तथा कविमित्रों धर्मवीर भारती, विजयदेवनारायण शाही आदि के संपर्क से साहित्यिक अभिरुचि को नया आयाम मिला। बाद में मुरादाबाद से बी०एड० करने के बाद 1958 में आकाशवाणी दिल्ली में आये। मध्यप्रदेश के संस्कृति विभाग के अंतर्गत भाषा विभाग में रहे।
प्रसिद्ध रचनाएं :
दुष्यंत कुमार ने ‘कहीं पे धूप की चादर’, ‘बाढ़ की संभावनाएँ’, ‘इस नदी की धार में’, ‘हो गई है पीर पर्वत-सी’ जैसी अनेक कालजयी काव्य रचनाएं की है। आपातकाल के समय उनका कविमन क्षुब्ध और आक्रोशित हो उठा, जिसकी अभिव्यक्ति कुछ कालजयी ग़ज़लों के रूप में हुई, जो उनके ग़ज़ल संग्रह ‘साये में धूप’ का हिस्सा बनीं। दुष्यंत कुमार को सरकारी सेवा में रहते हुए सरकार विरोधी काव्य रचना के कारण उन्हें सरकार का कोपभाजन भी बनना पड़ा। मात्र 44 वर्ष की आयु में 30 दिसंबर 1975 की रात्रि में हृदयाघात से उनकी असमय मृत्यु हो गई।
Team : Satyam