म्युनिसपैलिटी जैसे स्थानीय निकाय, राज्य विधानसभा और लोकसभा, ये तीनों चुनाव एक ही मतदाता सूची से कराए जाएं, सरकार इस संभावना को तलाश रही है और इस पर विचार कर रही है।

पीएमओ की बैठक

इंडियन एक्सप्रेस ने एक ख़बर में कहा है कि प्रधानमंत्री कार्यालय यानी पीएमओ इस कोशिश में है। ज़रूरत पड़ी तो इसके लिए संविधान संशोधन भी किया जा सकता है और सरकार उस पर भी विचार कर सकती है।

संविधान संशोधन?

दरअसल, 13 अगस्त को पीएमओ में इस मुद्दे पर एक बैठक हुई, जिसमें एक ही मतदाता सूची से सभी चुनाव कराने पर चर्चा हुई और उसके राह में आने वाले अड़चनों पर भी विचार हुआ। कैबिनेट सचिव राजीव गौबा, लोकसभा के सचिव जी. नारायण राजू, पंचायत राज सचिव सुनील कुमार और चुनाव आयोग के तीन प्रतिनिधि इसमें मौजूद थे।

यह समझा जाता है कि यह मुमकिन तभी होगा जब कम से कम दो संविधान संशोधन पारित करवाए जाएं। अनुच्छेद 243 के और अनुच्छेद 243 जेडए में पंचायत और म्यनिसपल चुनाव से जुड़े प्रावधान हैं। इसमें राज्य चुनाव आयोग को मतदाता सूची तैयार करने का पूरा हक दिया गया है।

इसके अलावा अनुच्छेद 324 (1) में यह प्रावधान है कि वह चुनाव आयोग को मतदाता सूची तैयार करने का पूरा अधिकार देता है।

अलग मतदाता सूची

फ़िलहाल स्थिति यह कुछ राज्य चुनाव आयोग के मतदाता सूची का ही इस्तेमाल स्थानीय चुनाव और विधानसभा चुनाव में कर लेते हैं।

कई राज्यों के पास अपनी अलग मतदाता सूची है और वे उसके आधार पर ये चुनाव करवाते हैं। ऐसे राज्यों में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, ओडिशा, असम, मध्य प्रदेश, केरल, असम, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड हैं।

क्या कहना है चुनाव आयोग का?

पीएमओ की बैठक में चुनाव आयोग के सुनील कुमार का कहना था कि सभी राज्यों से यह आग्रह किया जाए कि वे चुनाव आयोग की मतदाता सूची का ही इस्तेमाल करें। कैबिनेट सचिव इस मुद्दे पर सभी राज्यों से बात करेंगे।
यह प्रस्ताव इसलिए लाया जा रहा है कि बीजेपी के चुनाव घोषणा पत्र में यह कहा गया है कि एक ही मतादाता सूची पर चुनाव होने चाहिए।

एक देश-एक चुनाव!

याद दिला दें कि इसके पहले प्रधानमंत्री ने ज़ोर देकर कहा था कि लोकसभा और सभी राज्यों के विधानसभाओं के चुनाव एक साथ ही होने चाहिए, जिससे पैसे बचेंगे और एक बार में ही पूरी प्रक्रिया निबट जाएगी।

इस प्रस्ताव में दिक्क़त यह है कि अलग-अलग राज्यों में विधानसभा का कार्यकाल पूरा होने का अलग-अलग समय है। यदि इसे इसे एक बार में ठीक भी कर लिया जाए तो दूसरी दिक्क़त यह है कि बीच में राजनीतिक कारणों से विधानसभा भंग कर फिर से चुनाव कराने की नौबत आने पर क्या किया जाएगा।

कुछ राज्य सरकारों ने यह कह कर विरोध किया था कि यह संघीय ढाँचे को कमज़ोर करने की कोशिश है।

पर्यवेक्षकों का कहना था कि प्रधानमंत्री इस मास्टर स्ट्रोक के जरिए तमाम स्थानीय दलों की जड़ों पर चोट करना चाहते थे। लोगों का मानना था कि लोकसभा के राष्ट्रीय मुद्दों से प्रभावित होकर लोग विधानसभा में भी वोट डालेंगे और वह स्थानीय दलों के ख़िलाफ़ जाएगा।

बहरहाल, सरकार एक मतदाता सूची पर पूरे देश में चुनाव कराने की तैयारी कर रही है।

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