देव शिल्पी भगवान विश्वकर्मा अपने विशिष्ट ज्ञान के कारण मानव ही नहीं, अपितु देवताओं में भी पूजित हैं। ज्योतिषाचार्य पं. सचिन कुमार दुबे कहते हैं कि विश्वकर्मा के पूजन के बिना कोई भी तकनीकी कार्य शुरू नहीं होता है। सृष्टि कर्ता, शिल्प कलाधिपति, तकनीकी और विज्ञान के जनक भगवान विश्वकर्मा की पूजा 17 सितंबर गुरुवार को है। प्रतिवर्ष विश्वकर्मा पूजा कन्या सक्रांति को मनाई जाती है। काशी के महावीर पंचांग के अनुसार कन्या राशि की सूर्य संक्रांति 17 सितंबर गुरुवार को दिन के 9:51 बजे से आंरभ हो जाएगी। स्थिर लग्न में पूजा का विशेष महत्व होता है। विश्वकर्मा पूजन के लिए शुभ मुहूर्त दिन के 10.19 से 12.35 बजे तक है। ऐसे इस दिन कभी भी विश्वकर्मा की पूजा की जा सकती है।
धाॢमक मान्यताओं के अनुसार विश्वकर्मा निर्माण और सृजन के देवता हैं। देवताओं के अस्त्र-शस्त्र, सोने की लंका, पुष्पक विमान और भगवान कृष्ण की द्वारिका नगरी का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने ही किया था। निर्माण और सृजन से जुड़े लोग भगवान विश्वकर्मा की श्रद्धा भक्ति के साथ पूजा करते हैं। ऋग्वेद और वराह पुराण में भी भगवान विश्वकर्मा का उल्लेख मिलता है।
पूरे ब्रह्मांड के निर्माणकर्ता हैं विश्वकर्मा
हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विश्वकर्मा ने पूरे ब्रह्मांड का निर्माण किया है। पौराणिक युग में इस्तेमाल किए जाने वाले हथियारों को भी विश्वकर्मा ने ही बनाया था, जिसमें वज्र भी शामिल है। जो भगवान इंद्र का हथियार था। वास्तुकार कई युगों से भगवान विश्वकर्मा को अपना गुरु मानते हुए उनकी पूजा करते आ रहे हैं। साथ ही यह भी मान्यता है कि प्राचीन काल में सभी का निर्माण विश्वकर्मा ने ही किया था। स्वर्ग लोक, सोने का शहर लंका और कृष्ण की नगरी द्वारका, सभी का निर्माण विश्वकर्मा के ही हाथों हुआ था।
विश्वकर्मा पूजा की विधि
विश्वकर्मा पूजा के लिए भगवान विश्वकर्मा की प्रतिमा को विराजित कर इनकी पूजा की जाती है, हालांकि बहुत से लोग अपने कल-पुर्जे को ही भगवान विश्वकर्मा मानकर उसकी पूजा करते हैं। इस दिन कई जगहों पर यज्ञ का भी आयोजन किया जाता है।