नई दिल्ली: कोरोना वायरस (Corona virus) के संक्रमण फैले पांच महीने से ज्यादा का समय हो गया है. कई देशों में महीनों से चला आ रहा लॉकडाउन (Lock Down) खत्म करने की तैयारी चल रही है. लेकिन इस बीच न तो कोरोना का कोई इलाज या वैक्सीन मिली है और न ही इस संक्रमण के प्रसार में कोई कमी आई है. लेकिन लॉकडाउन के बाद सार्वजनिक जगहों पर कोरोना संक्रमण वाली जगहों और सतहों का पता लगाने की एक पद्धति की वैज्ञानिक अनुशंसा कर रहे हैं.
लॉकडाउन के बाद कई उपायों की हो रही है खोज
लॉकडाउन के बाद जहां कई देश सोशल डिस्टेंसिग और मास्क जैसे उपायों का अनिवार्य कर रहे हैं. हवीं अन्य उपाय भी खोजे जा रहे हैं जिससे संक्रमण का प्रसार रोका जा सके, सीमित किया जा सके. इन्हीं उपायों में से एक अल्ट्रावॉयलेट किरणों का उपयोग भी है.
सार्वजनिक स्थानों पर होगा इनका उपोयग
अल्ट्रावॉलेट किरणें इंसान के लिए बहुत नुकसानदेह होती हैं, लेकिन वैज्ञानिकअल्ट्रावॉलेट जर्मिसाइडल रेडिएशन (UVGI) से सार्वजिनक स्थानों पर वायरस संक्रमण वाली जगहों को विसंक्रमित (Disinfect) करने की तकनीक पर अध्ययन कर रहे हैं. इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार शोध में ऐसी पद्धति विकसित की जा रही है जिससे स्कूल कॉलेज, रेस्तरां, मॉल आदि जैसे सार्वजनिक स्थलों विसंक्रमित करने के लिए अल्ट्रावॉलेट किरणों का उपयोग किया जा सकता है.
क्या वाकई ये हानिकारक किरणें मार सकती हैं वायरस को
अल्ट्रावायरस किरणें सूर्य से आती हैं और वे हमारी धरती की सतह तक नहीं पहुंच पाती हैं. हमारी कोशिकाओं को मार सकती हैं. हमें कैंसर से पीड़ित तक कर सकती हैं. हमारे डीएनए तक को नुकसान पहुंचा सकती है. प्रिंसटन पब्लिक हेल्थ रीव्यू में प्रकाशित शोध में समझाया गया है कि ये किरणें संक्रमण फैलाने वाले रोगाणुओं को भी मार सकती हैं.
वैज्ञानिकों को है यह विश्वास
दरअसल वैज्ञानिक अल्ट्रावॉलेट किरणों की मारक क्षमता का उपयोग करना चाहते हैं. इसके लिए वे इन किरणों को हवा विसंक्रमित करने के लिए प्रभावी मानते हैं. उनका विश्वास है कि इससे कोरोना संक्रमण फैलने से रुक सकता है और उसका प्रसार काबू किया जा सकता है.
कैसे काम करती है यह पद्धति
UVGI उन सतहों पर इन किरणों को फेंकता है जो संक्रमित हैं. इसमें हवा, पानी और सतहें शामिल हैं जहां कोरोना वायरस की उपस्थिति हो सकती है. अमेरिका के सेंटर्स फॉर डिसीज प्रवेंशन एंड कंट्रोल (CDC) का कहना है कि यह एक आशाजनक विसंक्रमण (Disinfection) विधि हो सकती है. लेकिन कारगरता इसके डोज पर निर्भर करती है.
टीबी को विसंक्रमित करने के लिए उपयोग में आती है यह पद्धति
इससे पहले UVGI का उपयोग टीबी जैसी बीमारी के संक्रमण को रोकने के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है. इसके लिए CDC ने गाइडलाइन भी जारी की हुई हैं. साल 2005 में CDC ने इन गाइडलाइन में संशोधन भी किया था. इन गाइडलाइन का उद्देश्य अस्पताल में मरीजों से स्वास्थ्यकर्मियों के बीच टीबी संक्रमण को फैलने से रोकना था.
UVGI लैम्प करेंगे यह काम
वैज्ञानिकों ने सलाह दी है कि संक्रमित कमरों में अगल UVGI लैम्प लगाया जाए तो वे सतहों पर जमे रोगाणु को नष्ट कर देंगे. ऐसे में छत पर लगा पंखा चला दिया जाए तो यह काम और जल्दी होगा क्योंकि रोगाणु जल्दी से हवा में आ जाएंगे और जल्दी से से विसंक्रमण होने की संभावना बनेगी. UVGI लैम्प कमरों के कोने में, एयर क्लीनर्स या वेंटीलेटर सिस्टम के एयर डक्ट में भी लगाया जा सकता है.
कितनी कारगर है यह तकनीक
शोधपत्र के अनुसार यह तकनीयक काफी कारगर है. लेकिन इस मामले में कुछ कारक भी ध्यान में रखने की जरूरत है. इसमें मौसम, वहां में नमी और डोज यानि कितनी मात्रा में इसके उपयोग की जरूरत है यह देखना भी जरूरी है. इसके अलावा हवा का प्रवाह, रोगाणु की उपस्थिति का स्थान, आदि का भी ध्यान रखने की जरूरत है. जैसे यह देखना जरूरी है कि संक्रमण फैलाने वाले रोगाणु कहीं लैम्प के पीछे ही न पहुंच जाएं. फिर भी बड़े पैमा से UVGI का उपयोग कितना कारगर होगा यह भी देखने की बात है. क्या स्कूल यूनिवर्सिटी, रेस्तरां, सिनेमा हॉल जैसी जगहों पर यह महंगा भी हो सकता है.
तमाम आशंकाएं इस तकनीक के उपयोग के तरीके और उपयोग के दौरान बरती जाने वाली सावधानी पर निर्भर करती हैं. लेकिन तकनीक काम की है इसमें भी कोई दो राय नहीं हैं.
Input : News18