कहा जाता है कि अलवर के महाराजा जय सिंह लंदन घूमने गए थे. जब उन्हें वहां रोल्स रॉयस कार के शोरूम में नहीं घुसने दिया गया तो उन्होंने 06 रोल्स रॉयस कारें खरीदीं और भारत लाकर उन्हें कूड़ा बटोरने वाले वाहनों में बदल दिया. क्या वाकई ये सच है. कितनी सच्चाई है इस बात में. और ये भी जानें कि किस तरह भारतीय राजे-महाराजों के बीच रोल्स रॉयस कारों का क्रेज हुआ करता था.
एक जमाने में रोल्स रॉयस को दुनिया की सबसे महंगी कार माना जाता था. दुनिया के हर रईस और बड़े लोगों की हसरत होती थी कि उनके पास ये कार जरूर हो. भारतीय राजे-महाराजा भी इस कार को अपने पास रखने के लिए दीवाने रहते थे. रोल्स रॉयस की एक खासियत ये भी थी कि वो यूं ही किसी को अपनी कार नहीं बेचती थी बल्कि उसका बैकग्राउंड और आर्थिक स्थिति के साथ हैसियत भी चेक करती थी. इसके बाद ही उन्हें कार बेचती थी.
रोल्स रॉयस कारें आज भी दुनियाभर में वैभव और लग्जरी की प्रतीक मानी जाती हैं. आज भी रोल्स रॉयस को दुनिया की सबसे लग्जरी कारों में गिना जाता है. इसे रखना शान की बात होती है. इसीलिए दुनियाभर के धनाढ्य लोगों की कारों में रोल्स रॉयस कारें जरूर होती हैं.
हमारे देश में भी राजे महाराजा अपनी शानोशौकत के लिए रोल्स रॉयस खरीदना फख्र की बात मानते थे. इसी को लेकर एक रोचक वाकया अलवर के महाराजा जय सिंह से जुड़ा है. कहा जाता है कि वो रोल्स रॉयस कारों का इस्तेमाल कूड़ा गाड़ी के तौर पर करते थे यानि शहर भर में कूड़ा इकट्ठा करने वाले वाहन के तौर पर. ऐसा उन्होंने इसलिए किया क्योंकि लंदन में रोल्स रॉयस के शोरूम मं उन्होंने खुद को अपमानित महसूस किया था.
महाराजा जय सिंह एक बार लंदन गए थे. उन्होंने कैजुअल इंडियन ड्रेस पहना हुआ था. वो शहर में घूम रहे थे. तभी उन्होंने शोरूम में रोल्स रॉयस कारें देखीं. वो शोरूम के अंदर जाना चाहते थे. क्योंकि वो इन कारों के बारे में कुछ जानना चाहते थे. अचानक उनकी दिलचस्पी इन कारों के नए मॉडल को खरीदने में जग गई. शोरूम वालों को लगा कि वो भिखारी हैं, इसलिए उन्हें अंदर नहीं घुसने दिया गया.
महाराजा बहुत नाराज हुए. उन्होंने खुद को अपमानित महसूस किया. उन्होंने फैसला किया कि वो 06 रोल्स रॉयस कारें खरीदेंगे. उन्होंने खरीदी भी. जब ये कारें जहाज से भारत पहुंचीं तो उन्होंने इसे अपने नगर पालिका को दे दिा ताकि उनका जो अपमान लंदन में शोरूम में हुआ, उसका बदला ले सकें. उन्होंने नगर पालिका कर्मियों से कहा कि इन कारों का इस्तेमाल कूड़ा इकट्ठा करने वाली गाड़ियों के तौर पर किया जाए. ये अलवर में एक रोल्स रॉयस कूड़े के पास खड़ी है. ये तस्वीर इंटरनेट पर बहुत वायरस होती रही है और संबंधित खबर भी.
वैसे इस पूरे मामले में सच्चाई क्या है. क्या वास्तव में ऐसा हुआ था. इसके लिए पहले हमें महाराजा जय सिंह के बारे में जानना होगा. उनका पूरा नाम महाराजा सवाई जय सिंह था. उन्हें जय सिंह द्वितीय के तौर पर भी जाना जाता था. वो 03 नवंबर 1688 में पैदा हुए और 21 सितंबर 1743 में उनका निधन हो गया. यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि मोटर से चलने वाले वाहन 1885 से पहले शुरू नहीं हुए थे. पहला मोटर आधारित वाहन कार्ल बेंज ने 1885 में विकसित किया था.
साथ ही रोल्स रॉयस की शुरुआत 1906 में हुई थी. यानि महाराजा जयसिंह के निधन के बाद. ऐसे में ये स्टोरी अपने आपमें कपोल कल्पित लगती है. हालांकि रोल्स रॉयस को कूड़ा गाड़ी के तौर पर इस्तेमाल करने की कहानियां हैदराबाद के निजाम और भरतपुर के महाराजा किशन सिंह और महाराजा पटियाला से भी जुड़ी हैं.
रोल्स रॉयस के सामने झाड़ू लगाने की सच्चाई क्या है . रोल्स रॉयस के आगे झाडू़ लगाने का मामला वो नहीं है, जो समझा गया कि इससे सफाई की जाती थी. बल्कि असलियत ये है कि झाड़ू टायरों के आगे इसलिए लगाई जाती थी ताकि वाहन के कीमती टायर बचे रहें. उनके रास्ते में कूड़ा-करकट और पत्थर नहीं आए. पहले भारत की सड़कें बहुत खराब हुआ करती थीं.
वैसे भारतीय महाराजा रोल्स रॉयस ब्रांड की कारों के दीवाने थे. पूरे देश में भारतीय महाराजाओं ने 1920 के दशक तक सैकड़ों रोल्स रॉयस कारें खरीदकर उन्हें अपने काफिले में शामिल किया. बाद में जब कुछ महाराजाओं ने महसूस किया कि हर राजा के पास ऐसी कार है तो उन्होंने खास आर्डर से जरिए अपनी कार को कस्टमाइज कराना शुरू किया. कई महाराजा तो थोक के भाव में ऐसी कारें खरीदते थे. जैसे महाराजा मैसूर ने पहली बार 06 रोल्स रॉयस कार खरीदी तो दूसरी बार में 14 और फिर एक लाट में इससे और भी ज्यादा.
Source : News18
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