चार धाम यात्रा की तैयारियां शुरू हो गई हैं. हालांकि 8 जून के बाद सरकार इसे आस्थावानों की सीमित संख्या के लिए शुरू करेगी. पहले चरण में केवल उत्तराखंड (Uttarakhand) के लोगों को ही यात्रा करने की अनुमति होगी. दूसरे चरण में अन्य राज्य सरकारों से वार्ता कर बाहरी श्रद्धालुओं के लिए भी यात्रा शुरू की जाएगी. अनलॉक 1.0 में केंद्र सरकार ने 8 जून से धार्मिक स्थलों को खोलने की छूट भी दी है. सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए पूजा-अर्चना की अनुमति है. ऐसे में चार धाम यात्रा भी शुरू की जा सकती है. गंगोत्री और यमुनोत्री के कपाट अक्षय तृतीया के पर्व पर 26 अप्रैल को खोले जा चुके हैं. केदारनाथ के कपाट 29 अप्रैल और बद्रीनाथ के कपाट 15 मई को खोले गए थे. लॉकडाउन के कारण अभी तक चार धाम में गिनती के ही लोग मंदिरों में दिखे हैं.
कठिन है डगर, पर नहीं डिगते आस्थावान
हिमालय की गोद में बसे चार धाम में बद्रीनाथ का सबसे अधिक महत्व है. बद्रीनाथ के अलावा इसमें केदारनाथ (शिव मंदिर) और यमुनोत्री और गंगोत्री (देवी मंदिर) शामिल हैं. बद्रीनाथ भगवान विष्णु का पवित्र धाम है, जहां इन्हें बद्री विशाल भी कहा जाता है. केदारनाथ भगवान शिव की भूमि है और यह पंचकेदारों में से एक है. गंगोत्री और यमुनोत्री धाम पवित्र गंगा और यमुना नदियों के उद्गम स्थल हैं. बद्रीनाथ उत्तराखंड के चमोली, केदारनाथ रुद्रप्रयाग और गंगोत्री-यमुनोत्री उत्तरकाशी जिले में स्थित हैं. गढ़वाल के इन तीनों जिलों में स्थित चारो धामों पर 12 हजार करोड़ का कारोबार टिका है. चार धाम के दर्शन के लिए 4,000 मीटर से भी ज्यादा ऊंचाई की चढ़ाई करनी पड़ती है. यह डगर कहीं आसान तो कहीं बहुत कठिन है. चार धाम यात्रा केवल गर्मी के महीनों में होती है और शीतकाल में सभी धामों के कपाट बंद कर दिए जाते है. पिछले वर्ष केवल गंगोत्री-यमुनोत्री में 10 लाख श्रद्धालु पहुंचे थे.
जीवन-मृत्यु के बंधन से हो जाते हैं मुक्त
सनातन धर्म में चारो धामों को बहुत ही पवित्र और मोक्ष प्रदाता बताया गया है. धर्म ग्रंथों के अनुसार, जो लोग चार धाम के दर्शन करने में सफल होते हैं, उनके न केवल इस जन्म के पाप नष्ट हो जाते हैं, बल्कि वे जीवन-मृत्यु के बंधन से भी मुक्त हो जाते हैं. इस स्थान के बारे में यह भी कहा जाता है कि यह वही स्थल है, जहां पृथ्वी और स्वर्ग एकाकार होते हैं. तीर्थयात्री इस यात्रा के दौरान सबसे पहले यमुनोत्री (यमुना) और गंगोत्री (गंगा) का दर्शन करते हैं. फिर यहां से पवित्र जल लेकर केदारेश्वर पर जलाभिषेक करते हैं. उसके बाद अंत में बद्रीनाथ धाम के दर्शन करते हैं.
क्या है पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार पीड़ित मानवता को बचाने के लिए जब देवी गंगा ने पृथ्वी पर आना स्वीकार किया तो हलचल मच गई, क्योंकि पृथ्वी, गंगा के प्रवाह को सहन करने में असमर्थ थी. फलस्वरूप गंगा ने खुद को 12 भागों में विभाजित कर लिया. इन्हीं में से अलकनंदा भी एक हैं, जो बाद में भगवान विष्णु का निवास स्थान बनीं. इसी स्थान को बद्रीनाथ के नाम से जाना जाता है. बद्रीनाथ ‘पंचबद्री’ में एक है.
Input : News18