कहते हैं गांव की सुबह शहर से जल्दी होती है। और ये सत्य भी है क्योंकि यहां सूर्य इंसान को नहीं, इंसान सूर्य को जगाता है। कोरोना का डर तो पुरे विश्व में है पर गांव के किसानों को अभी फसल काटने की भी चिंता है। चैत्र मास खत्म होने वाला है, पछुआ हवा तेज है और खेत गेंहू के पक चुके सुनहरे पौधों से भरी हुई है। ऐसा लगता है मानों पुरी धरती सोने की हो, यहां देखकर आपको यकीन हो जाएगा की सोना जमीं पर उगाया जाता है। वैसे तो गांवों में पुरा मोहल्ला हीं एक परिवार होता है पर लॉकडाउन की वजह से यह परिवार फिलहाल स्थिर है। आजकल सुबह सिर्फ किसान हीं बाहर निकलते हैं क्योंकि दिन में धूप तेज हो जाता है अतः सुबह और शाम में गेहूं की कटाई चलती है।
मजदूरों की कमी के कारण कुछ लोग कड़े दोपहर में भी कटाई करते दिखाई देते हैं। परन्तु गांवों का अनुशासन देखने लायक है। सुबह उठते हीं आंखें मलते पड़ोस वाले चाचा के घर बैठकर चाय पीने वाले आजकल अपने हीं घरों में रहते हैं। लॉक डाउन का पालन करते हैं। गांव के कई मोहल्लों के रास्ते गांव वालों ने बंद कर रखें है। गांवों में हमेशा से हाट में जाकर सब्जियां खरीदने का रिवाज रहा है पर आजकल लोग घर में हीं है। शहरों में घुम घूमकर सब्जी बेचने की प्रथा आजकल गांव में दिख रही है।
पर सुबह 9 बजते हीं हर घर से रामायण धारावाहिक की ध्वनि गूंजने लगती है। यहां तो हर कोई गरीब है फिर भी जान की परवाह हर किसी को होती है। गिने चुने दवाई की दुकानें व चंद किराने की दुकानें खुली हुई रहतीं हैं। शायद आपको आश्चर्य हो परन्तु यहां किराने की दुकान सुबह 6 बजे से 9 बजे तक और शाम को 4 बजे से 6 बजे तक हीं खुलता है। शहर को गांवों की तुलना में हमेशा अधिक शिक्षित माना गया है किंतु यहां अनुशासन में गांव आगे है।
शाम होते-होते हर कोई थक जाता है घरों में बैठे – बैठे। शाम को सब अपनें – अपनें घरों के बाहर बरामदे पर बैठते हैं एकजुट नहीं होते। सोशल डिस्टेंसिंग भी तो जरूरी है। पर यहां जो चर्चा होती है वो आपको चकित कर देगा। यहां हास्य, व्यंग और ज्ञान, सबकुछ संतुलित मात्रा में मिलता है। सबसे अच्छी बात की यहां लॉक डाउन के पालन के लिए पुलिस को अधिक मेहनत की आवश्यकता नहीं पड़ी।
बिहार के वैशाली जिले के एक गांव में अध्ययन के आधार पर।