16 अगस्त 1942 का दिन भारत ही नहीं, बल्कि लंदन में भी सुर्खियों में था. उस दिन दोपहर का सूरज ढलान पर था. फिजा में खामोशी थी, जिसे चीरते हुए आजादी के दीवानों की टोली मीनापुर थाने पर पहुंच गयी. अंग्रेजों की ताबड़तोड़ गोली से चैनपुर गांव के वीर वांगुर सहनी शहीद हो गये. इसी के प्रतिशोध में मीनापुर के चैनपुर गांव के देशभक्त जुब्बा सहनी ने अंग्रेज थानेदार लुइस वालर की चिता मीनापुर थाना परिसर में ही सजा दी थी. लुइस वालर को मीनापुर थाने में जिंदा जला दिया गया. इसके बाद यूनियन जैक को उतार कर तिरंगा लहरा दिया गया.

जज से जुब्बा सहनी की बातचीत

वालर को जलाने में तुम्हारे साथ कौन-कौन था.

को…. को…. कोई नहीं था. मैंने अकेले ही अंग्रेज थानेदार को फूंक दिया. जुब्बा ने हकलाते हुए कहा.

जज ने फिर पूछा – आग लगाने के लिए माचिस किसने दी.

जुब्बा ने तुतलाती आवाज में कहा- माचिस मेरे पास ही थी.

11 मार्च, 1944 को भागलपुर सेंट्रल जेल में वालर को मैंने मारा की सिंह गर्जना करने वाले मीनापुर प्रखंड के चैनपुर गांव के जुब्बा सहनी हर किसी के जुबान पर हैं. जुब्बा ने अंग्रेज थानेदार लुइस वालर को जिंदा जलाने का सारा इल्जाम अपने ऊपर लेकर 54 साथियों को फांसी के फंदे से बचा लिया था. बचपन से ही जीवटता व देशप्रेम की भावना से ओतप्रोत जुब्बा ने अंग्रेज थानेदार मिस्टर वालर की चिता थाना परिसर में ही सजा दी थी. मामले की सुनवाई कर रही एएन बनर्जी की अदालत में जुब्बा ने सारा इल्जाम अपने ऊपर लेकर फांसी के फंदे को कबूल किया.

चैनपुर गांव से कोसों दूर है विकास की रोशनी- सन 1906 में चैनपुर के पांचू सहनी के घर में पैदा लेने वाले जुब्बा का गांव आज भी बदहाल है. गांव में आज भी एक भी सरकारी स्कूल नहीं है. गांव के हामिद रेजा टुन्ना बताते हैं कि चैनपुर में एक भी सरकारी स्कूल नहीं है, जबकि स्कूल के लिए विंदा सहनी जमीन राज्यपाल के नाम दान कर चुके हैं. अमर शहीद के गांव के बच्चे दूसरे गांव में पढ़ने जाते हैं. चैनपुर को राजस्व ग्राम का दर्जा अब भी प्राप्त नहीं है. गांव में स्वास्थ्य उपकेंद्र भी नहीं है. जुब्बा के गांव में पहुंचने के बाद चारों ओर झोंपड़ी ही नजर आती हैं.

मुखिया अजय सहनी बताते हैं कि चैनपुर गांव में 138 लोगों को पीएम आवास योजना का लाभ दिया गया है. गांव की सड़क गड्ढे में तब्दील हो चुकी है. मुस्तफागंज बाजार से चैनपुर जाने वाले मार्ग का बुरा हाल है. चैनपुर से कोईली भराव सड़क का ग्रामीण कार्य विभाग से टेंडर हो चुका है. विस में सवाल उठने के बाद भी सड़क निर्माण कार्य शुरू नहीं हो सका. बिजली का तार जर्जर हो चुका है. पोल दूर-दूर पर होने से दुर्घटना की आशंका बनी रहती है. हल्की बाढ़ आने पर पुल के ऊपर से पानी बहने के कारण प्रखंड मुख्यालय से संपर्क भंग हो जाता है. वर्ष-2003 में तत्कालीन डीएम अमृतलाल मीणा ने गांव को राजस्व गांव बनाने की घोषणा की थी, लेकिन अब तक ऐसा नहीं हो सका है।

Input: Prabhat Khabar

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