देवी आराधना का पर्व नवरात्र शनिवार से शुरू होगा। उस दिन कलश स्थापना के साथ ही माता के प्रथम रूप मां शैलपुत्री की पूजा होगी। इसी के साथ नवसंवत्सर भी शुरू होगा।
हरिसभा चौक स्थित राधाकृष्ण मंदिर के पुजारी पं.रवि झा व रामदयालु स्थित मां मनोकामना देवी मंदिर के पुजारी पं.रमेश मिश्र बताते हैं कि इस बार वैधृति योग में कलश स्थापना होगा। दिन में करीब साढ़े ग्यारह से साढ़े बारह बजे के बीच अभिजीत मुहूर्त में कलश की स्थापना किया जाना बड़ा ही शुभ माना जा रहा है।
वासंतिक नवरात्र का बड़ा ही धार्मिक महत्व है। इसमें भक्तगण अपने अभीष्ट की सिद्धि के लिए आदिशक्ति मां भगवती के नौ स्वरुपों का पूजन कर उपासना करेंगे। आठ दिनों का नवरात्र होने से शक्ति उपासना के लिए यह बहुत शुभ माना जा रहा है। इधर, पूजा को लेकर साधकों ने तैयारी शुरू कर दी है। पूजन सामग्री की खरीदारी के लिए बाजार में काफी गहमागहमी देखी जा रही है।
कलश स्थापना की विधि
– कलश स्थापना के लिए सबसे पहले पूजा स्थल को अच्छी तरह से शुद्ध कर लेना चाहिए।
– फिर एक लकड़ी के पटरे पर लाल कपड़ा बिछाकर उसपर गणेश भगवान को याद करते हुए थोड़ा चावल रख देना चाहिए।
– भगवान शंकर, विष्णु, वरुण देवता और नवग्रह देवता का ध्यान करें।
– आह्वान के बाद मां दुर्गा की स्तुति करें। यदि मंत्र याद नहीं तो दुर्गा चालीसा पढ़ें। यदि वह भी याद नहीं हो तो ‘ऊं दुर्गायै नम:Ó का जप करें।
– ध्यान रहे कि कलश स्थापना के समय पूरा परिवार मौजूद रहे।
– कलश रखने की जगह पर करीब एक फीट की गोलाई में मिट्टी बिछाकर उसमें जौ बो देना चाहिए। पानी के छींटे मारने के बाद मां की स्तुति करते हुए मिट्टी के बीचोंबीच कलश रख दें।
– कलश पर रोली से स्वास्तिक और बनाकर कलश के मुख पर रक्षासूत्र बांध दें।
– अंत में दीपक जलाकर कलश की पूजा करेंं।
– प्रतिदिन कलश की पूजा और आरती करें।
पूजन सामग्री
मिट्टी के पात्र, करीब 250 ग्राम जौ, शुद्ध साफ की हुई मिट्टी, शुद्ध जल से भरा मिट्टी का कलश (सोने, चांदी, तांबे या पीतल का कलश भी ले सकते हैं), मौली, आम का पल्लव, कलश के ऊपर रखने के लिए मिट्टी का बरतन, साबूत चावल, एक पानी वाला नारियल, सुपारी, कलश में रखने के लिए सिक्के, लाल कपड़ा या चुनरी, मिठाई, लाल अरहुल के फूल व फूलों की माला, पीला सरसों, काला तिल, 6 लौंग, पान आदि।
Input : Dainik Jagran