लोक आस्था और सूर्य उपासना का महापर्व छठ का चार दिवसीय अनुष्ठान नहाय खाय के साथ आज (सोमवार) से शुरू होगा। छठ महापर्व के लिए तैयारियां शुरू हो गई हैं। महापर्व छठ के अनुष्ठान पर ग्रह गोचरों का शुभ संयोग बन रहा है।
भारतीय प्राच्य विद्या सोसाइटी के प्रतीक मिश्रपुरी ने बताया कि नहाय खाय से लेकर उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने तक कई योग बन रहे हैं। जो शुभ फल प्रदान करने वाले हैं। उन्होंने बताया कि नहाय खाय के दिन सूर्य से तीसरे भाव में चंद्रमा होने से वरिष्ठ योग एवं सूर्य व बुध साथ होने से बुधादित्य योग का निर्माण हो रहा है।
इस योग में व्रती नहाय खाय पर गंगा स्नान करने के बाद अरवा चावल चने की दाल व कद्दू की सब्जी का प्रसाद ग्रहण करते हैं। इसके साथ ही नौ नवंबर को खरना के दिन रस केसरी योग बना रहा है। 10 नवंबर को गज केसरी योग में व्रती सायंकालीन अर्घ्य देंगे। वहीं उदयीमान सूर्य को अर्घ्य देने के लिए पराक्रम योग बन रहा है। जिसमें व्रती अपने व्रत का समापन करेंगे।
सादगी व पवित्रता छठ पूजा की पहचान
छठ पूजा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पक्ष इसकी सादगी, पवित्रता, भक्ति एवं आध्यात्म है। इसकी उपासना पद्धति सरल है। इसमें किसी आचार्य की आवश्यकता नहीं है। यह लौकिक रीति-रिवाज एवं ग्रामीण जीवन पर आधारित है।
महाभारत काल से प्रचलित है व्रत
हिंदू धर्म के अधिकांश व्रत महिलाएं ही करती हैं, पर छठ पर्व में पूरा परिवार शामिल हो जाता है। छठ पर्व की शुरूआत महाभारत काल से मानी जाती है। पांडव जब वनवास काट रहे थे तो द्रोपदी ने कुल पुरोहित की आज्ञा प्राप्त होने पर युधिष्ठिर के साथ छठ व्रत पूजन किया था। सूर्यदेव ने प्रसन्न होकर युधिष्ठिर को अछूत ताम्रपात्र प्रदान किया। जिससे मुधर स्वादिष्ट भोजन हमेशा उपलब्ध रहता था। नारायण ज्योतिष संस्थान के विकास जोशी ने बताया कि द्रोपदी के व्रत पूजन से प्रसन्न होकर भगवान सूर्य (छठ माता) ने युधिष्ठिर को को राजपाट, धन दौलत, वैभव मान सम्मान, यश कीर्ति पुन: प्रदान किया।
छह पूजा कार्यक्रम पर एक नजर
– नहाय-खाय: छठ पर्व का प्रथम दिन नहाए खाय से शुरू होता है। नहाए-खाय आठ नवंबर को है।
– खरना : छठ व्रत का दूसरा दिन खरना नौ नवंबर को हैं। इस दिन पंचमी तिथि है। इसके बाद षष्ठी शुरू होगी।
– सायंकालीन अर्घ्य : छठ पर्व के तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल पष्ठी को पूर्ण उपवास होता है। यह व्रत दस नवंबर को है।
– प्रात कालीन अर्घ्य : पष्ठी व्रत की पूर्णाहुति चतुर्थ दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ होती है। 11 नवंबर को प्रातकालीन अर्घ्य दिया जाता है।
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