झंझारपुर प्रखंड के परसाधाम सूर्य मंदिर में छठ पूजा पर विशेष पूजा-अर्चना की व्यवस्था होती है। मंदिर के बगल के पोखरा की साफ-सफाई कराई जाती है। अर्घ्य की व्यवस्था उक्त पोखरा में ही की जाती है। इस सूर्य मंदिर पर मार्तण्ड महोत्सव भी मनाया जाता है। परसाधाम का सूर्य मंदिर और सूर्य प्रतिमा के दर्शन को दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं। सरकारी स्तर पर भी इस सूर्य मंदिर को मान्यता मिल चुकी है। बिहार सरकार का पर्यटन विभाग कई वर्षों से यहां मार्तण्ड महोत्सव मना रहा है।

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प्रतिमा और मंदिर का इतिहास

जिला के झंझारपुर अनुमंडल मुख्यालय से लगभग 12 किलोमीटर पूरब एनएच 57 से एक किलोमीटर दक्षिण में परसाधाम गांव तथा मंदिर स्थित है। 11 फरवरी 1983 को शिवरात्रि के दिन भगवान भास्कर की प्रतिमा मिट्टी के अंदर से निकली थी। उस समय के गांव में रहने वाले एक महादलित सोती मलिक मंदिर वाले स्थान पर घर बनाए थे। झोपड़ी के नजदीक से श्री मलिक (अब स्व.) ने उक्त स्थल से रात में प्रकाश आते देखा। ग्रामीणों को सूचित किया। ग्रामीणों ने घोघरडीहा के तत्कालीन थाना प्रभारी अलिहसन को इसकी जानकारी दी। रात में लोग चारो ओर फैल गए। पुन: प्रकाश आया, लोग आगे बढ़े कि प्रकाश बंद हो गया। लोग इसे दैवीय चमत्कार मानकर भूल गए। 11 फरवरी 1983 को श्री मलिक वहां मिट्टी खुदाई कर रहे थे कि अचानक प्रतिमा देखी गई। लोगों की भीड़ जुट गई और आस पड़ोस के गांव के लोग वहां पहुंचने लगे और भगवान भास्कर की पूजा शुरू हो गई।

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प्रतिमा की विशेषता

भगवान भास्कर की प्रतिमा अत्यन्त सुन्दर है। सात अश्व के रथ पर भगवान भास्कर विराजमान हैं। रथ पर सारथी के रूप में भगवान अरूण हैं। सूर्यदेव के रथ के नीचे एक रथ पर गणेश की मूर्ति अंकित है। लगभग चार फीट के काला शीला खण्ड पर बसाल्ट पत्थर से निर्मित भगवान सूर्यदेव के माथे पर टोपीनुमा मुकुट, पांव में कुशानकालीन जूता विराजमान है। भगवान के दोनों हाथ में ‘सनाल कमल’ तथा शरीर पर यज्ञोपवीत है। कमर में लटकती तलवार और पांव में जूता इरानी कला से ओतप्रोत लगता है तथा यह प्रतिमा इशापूर्व शताब्दी की लगती है। प्रतिमा के एक तरफ वरूण देव तथा उनकी पत्नी तथा दूसरे तरफ कुवेर एवं उनकी पत्नी की प्रतिमा अंकित है। प्रतिमा में काला सर्प को हंस अपने मुंह में पकड़े है तथा घोड़ा पर सवार घुड़सवार हाथी को अपने वश में किए हुए है जो मनमोहक दिखता है।

Source : Dainik Jagran

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