पितरों से जुड़ाव के कर्मकांड का पखवारा यानी पितृपक्ष। इस साल पितृपक्ष 20 सितंबर से छह अक्टूबर तक है। कोरोना गाइडलाइन के तहत इस बार भी पितृपक्ष मेला नहीं लगेगा, लेकिन कोविड प्रोटाकाल का पालन करते हुए पिंडदान पर रोक नहीं है।

गयापाल पंडा महेश गुपुत बताते हैं, वैसे तो गया जी में पूरे साल पिंडदान होता है, लेकिन भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से आश्विन अमावस्या तक पितृपक्ष की अवधि होती है। इस दौरान वे अपने समय की सुविधा और क्षमता के अनुसार एक दिन से लेकर 17 दिनों तक का श्रद्धकर्म शुरूकरते हैं।

पितृपक्ष व पिंडदान: गया जी में पवित्र फल्गु में जलांजलि व विष्णुचरण पर पिंड अर्पित किया जाता है। यह पौराणिक मान्यता है कि फल्गु की रेत और जल से पांव स्पर्श हो जाने पर भी पितर तृप्त हो जाते हैं। यहां भगवान राम ने भी अपने पिता राजा दशरथ का पिंडदान किया था। इसके अतिरिक्त पांच कोस में 54 पडवेदियां अवस्थित, जहां श्रद्धालु कर्मकांड करते हैं। इस वर्ष राज्य सरकार ने कोरोना गाइडलाइन के तहत छूट देते हुए विष्णुपद मंदिर के पट खोल दिए हैं तो पितृपक्ष के दौरान श्रद्धालुओं का आना स्वाभाविक है। जिला पदाधिकारी अभिषेक सिंह ने कहा कि पितृपक्ष मेला नहीं लगेगा, लेकिन गया आने वाले पिण्डानियों को कर्मकांड करने से नहीं रोका जाएगा। उन पिण्डानियों को कोरोना गाइडलाइन के तहत कर्मकांड करना है और इसकी निगरानी भी की जाएगी। स्वास्थ्य विभाग की ओर से कई स्थानों पर शिविर लगाकर कोरोना जांच व टीकाकरण किया जाएगा। श्रीविष्णुपद प्रबंधकारिणी समिति के अध्यक्ष शंभूलाल बिट्ठल ने कहा कि पिंडदान गया के अतिथि हैं। उन्हें सुविधा प्रदान करना हमारा कर्तव्य है।

Source : Dainik Jagran

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